महात्मा
गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के फ्यूजी गुरुजी केंद्र के अंतर्गत
समाजकार्य विभाग में पाँच दिवसीय डिजाइन कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस
कार्यशाला में समाज कार्य तृतीय छमाही के छात्रों के साथ-साथ एम. फिल. के छात्रों
ने हिस्सा लिया। जिनकी कुल संख्या 30 थी। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य उन सभी बनी
अवधारणाओं को तोड़ना था। जिसे
हमने अपने मस्तिष्क में इतनी जटिलता के साथ बैठा लिया
है कि उसके बाहर जाकर सोचना हमारे लिए मुश्किल है। हमें उन सभी बने हुये खाँचों से
बाहर निकालने की एक कोशिश थी। पाँच दिवसीय कार्यशाला में Visual Thinking से
बाहर निकल कर किसी भी ऑब्जेक्ट को Drawing के माध्यम से बताना था। जिसमें पहला चरण Visual Thinking का था। जिसके माध्यम से हमें किसी भी वस्तु या
दृश्य का चित्रण करना था। जो हमारे आस पास स्थित हो। उसके बाद का दूसरा चरण था। Visual Thinking से
बाहर निकलकर Physical उसे बनाना था। जिसमें Empathy
Map का इस्तेमाल करते हुये। अपने
सामने वाले की पसंद और न पसंद को जानकार उसके लिए कुछ न कुछ Design करना था।
अपने
सामने वाले व्यक्ति की पसंद को जानने और उसे मूर्तरूप देने का कार्य थोड़ा कठिन
जरूर था लेकिन सभी ने इसे पूरी मेहनत से पूर्ण करने की कोशिश की। इसके बाद का चरण
ही मुख्य तौर पर कार्यशाला का सबसे आवश्यक चरण था। जिसमें अब सभी को एक साथ ग्रुप
में कार्य करना था। सभी को पाँच ग्रुप में विभाजित किया गया। सब प्रतिभागियों को कुछ
विषय दिये गए जिसमें हस्तकला, पानी, स्वास्थ्य और स्वच्छता को रखा गया। इन सभी विषयों में अब Empathy Mapping के
माध्यम से समस्या को सामने लाना था। और उसी के अनुसार एक मॉडल को तैयार करना था। इस
मैपिंग में सभी विषयों में उन भागीदारों (Stake holder) खोजना था जो समस्या पैदा करते हैं। व्यक्ति से लेकर
सरकार,
यातायात, मीडिया और वो सब कुछ जो उससे किसी भी तरह जुड़ता हो। यह काम
पूरे ग्रुप को मिलकर करना था। सभी व्यक्तियों के विचार उसमें शामिल करने के साथ उस
समस्या को मॉडल से दर्शाना था। उसके बाद के चरण में नए idea को बाहर लाना इस कार्यशाला
का मुख्य उद्देश्य था।
प्रथम दिन की कार्यशाला- पहले दिन की कार्यशाला का पहला सत्र परिचय सत्र था। उसके सभी
सहभागियों को उस जगह (वर्क स्टेशन) को डिजाइन (स्केच) करना था। जहाँ सहभागियों को
अगले पाँच दिन बैठना और काम करना था। पहले दिन की कार्यशाला में समाज कार्य विभाग
के अलावा मनोविज्ञान के एम. फिल. के छात्रों ने भी हिस्सा लिया। यह सत्र लगभग दो
घंटे तक चलना था। लगभग सभी ने एक ही जगह को विभिन्न तरीके और अपने नज़रिये से पेपर
पर उतरने की कोशिश की कोई उस जगह को लगभग पेपर पर उतार पाया और किसी ने सिर्फ
कोशिश की। लेकिन सभी उसे पूरा करना चाह रहे थे। पर सभी छात्र चित्रकारी में अच्छे
न होने या फिर बहुत दिनों बात पेंसिल को पकड़ने और चित्रकारी करने की वजह से थोड़ा सकुचा
रहे थे। पहले सत्र का मकसद मात्र पेंसिल पकड़ना और स्केच करना था ताकि आप उस बने फ्रेम
से बाहर आ सकें। सभी ने इसे बाखूबी निभाने की कोशिश भी की। इसे इन चित्रों के
माध्यम से देखा जा सकता है।
Resource
person of Design Workshop
Mr. Muralidhar Reddy designcircleindia@gmail.com |
दूसरा चरण- दूसरे
चरण में गोले के अंदर गोले जैसी आकृति बनानी थी या उन आकृतियों का चुनाव करना था
जिसमें गोल की छवि बनती हो। लेकिन वह उन आकृतियों जैसी नहीं होनी चाहिए जो हम सभी
लगातार देखते रहते हैं। जैसे सूरज, चंद्रमा, घड़ी या इस तरह की जो भी आकृतियाँ होती हैं। इन सभी
आकृतियों से बाहर निकलकर सोचने की जरूरत थी। जब मानव मस्तिष्क ज्यादा परिपक्व हो
जाता है। तो वह उन छोटी-छोटी चीजों के बारे में भूल जाता है। जो उसके आस-पास होती
जरूर है लेकिन उन वस्तुओं तस्वीरों को वह देख कर भी अनदेखा कर देता है। इस चरण का
मुख्य उद्देश्य यही था। हमें उस बंधे हुये फ्रेम से बाहर निकालना। इसे निम्न
चित्रों के माध्यम से समझा जा सकता है।
चरण तृतीय- तीसरे
चरण का मुख्य उद्देश्य अपनी सोचने की क्षमता को और आगे ले जाकर सोचना था। अब वही
काम अर्ध गोलाकार के अंदर करना था। इसमें पेपर पर अर्धगोलाकार के अंदर छवियों को
बनाना था। अर्धगोलाकार के साथ-साथ उन छवियों के बारे में भी सोचना और उन्हें चित्र
के माध्यम से प्रस्तुत करना था जो गोल होते हुये भी किसी एक केंद्र से अर्धगोलाकार
दिखाई देती हैं। उदाहरण के लिए तरबूज का कटा हुआ भाग या फिर संतरे का कटा हुआ भाग।
इस तरह की बहुत वस्तुओं के बारे में या अर्धगोलाकार को मिलाकर कौन सी नई छवियों
का चित्रण किया जा सकता था। जिसमें अपनी-अपनी क्षमता के साथ लोगों ने विभिन्न
छवियों का चित्रण किया जिसे यहाँ देखा और समझा जा सकता है।
चौथा चरण- चौथे
चरण में सभी को कुछ वस्तुओं को देख कर उसे चित्र के माध्यम से प्रस्तुत करना था।
इस चरण में समूह के साथ काम करना था। इस चरण का उद्देश्य था किसी एक वस्तु के
कितने दृष्टिकोण हो सकते हैं और व्यक्ति उसे किस-किस दृष्टिकोण से देखता है। सभी
ने उन वस्तुओं को कई दृष्टिकोण से देखने और बनाने की कोशिश की। इसी चरण का एक
हिस्सा जिसमें इन्हीं वस्तुओं को उनके निश्चित कार्य के अलावा किस तरह से अन्य
कार्यों में प्रयोग किया जा सकता है। उसका भी चित्रण करना था। चित्रण के साथ ही नए
विचारों को बताना भी था। यह कैसे अन्य कामों में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसमें
कई समूहों ने बहुत ही अच्छा प्रदर्शन किया और नए विचारों को भी बहुत ही अच्छे
तरीके से पेपर पर उतरने की अच्छी कोशिश। जिसे इन चित्रों के माध्यम से आसानी से
समझा जा सकताहै।
पाँचवाँ चरण- इस
चरण में सभी सहभागियों को Empathy Map का प्रयोग
करते हुए करते हुये। सामने वाले व्यक्ति की feeling को समझना और उसे Empathy
Map के माध्यम से पेपर उतरना उसके बारे में अच्छा या बुरा ये सभी
जानने कि कोशिश करना था। साथ ही साथ उसकी पसंद का कुछ भी जो उसे अच्छा लगता हो
डिजाइन करना था। यह काम अब पेपर पर नहीं बल्कि अब से पेपर, लकड़ी और दफ्ती के माध्यम
से मूर्त रूम में तैयार करना था। सभी को यह प्रक्रिया एक खेल की तरह लग रही थी
जिसमें सीखने के साथ रोमांच भी था। लेकिन यह सभी को अलगे चरण के लिए तैयार करने की
प्रक्रिया थी। इस चरण में सभी तो नहीं पर काफी लोगों ने अच्छा प्रदर्शन करने की
कोशिश की। जिसे इन चित्रों के माध्यम से समझा जा सकता है।
छठा चरण- यह
चरण पूरी कार्यशाला का आखिरी और मुख्य चरण था। इस चरण में Empathy Map का इस्तेमाल करते हुए
किसी एक विषय को लेकर उसके बीच के भागीदार Stakeholder’s (Stakeholder theory Freeman, 1983 ) की खोज
करनी थी जो किसी भी तरह से उस विषय के लिए भागीदार होते हैं। जिसमें सभी सहभागियों
को पाँच ग्रुप में विभाजित किया गया।
पहला ग्रुप
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दूसरा ग्रुप
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तीसरा ग्रुप
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चौथा ग्रुप
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पाँचवा ग्रुप
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अभिषेक
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भानु कुशवाहा
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साजन
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निरंजन
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वरुण
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पुष्पेन्द्र बंबोड़े
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शैय्यद मंजुरअली
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दीनानाथ
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प्रसन्न
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डिसेंट
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महेश
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विजय वाघमारे
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मुकुन्द
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नूरीश
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किरण
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नौशेर
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मिथुन रोहित
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राजेश
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अनुराग
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जगपाल
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दुर्गा
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यशपाल
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दिलीप
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विकास+उमाशंकर
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नेपाल+ राजेश
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पहले और चौथे ग्रुप का
विषय- Craft Skill Development
दूसरे और तीसरे ग्रुप का विषय- Water
चौथे औऱ पाँचवे ग्रुप का विषय- Health and Sanitation
इन
सभी विषयों में इंपैथी मैप के माध्यम से Stakeholder’s की तलाश करनी थी जो इन विषयों के लिए किसी भी तरह
से जिम्मेदार हैं। उदाहरण के लिए Craft
Skill Development कैसे किया जा सकता है। उसके लिए जो Stakeholder’s
होलडर्स होंगे। उनकी खोजा करना था। आज दुनियाँ में शिल्प कला का ज्ञान
ख़त्म होता जा रहा है।जिसका मुख्य कारण है वो लोग जो इसके पीछे काम करते हैं। उन्हें
स्किल्ड नहीं किया जा रहा है या उनके ज्ञान को ख़ारिज किया जा रहा है। लेकिन जब यही
काम कोई बड़ी नामी कंपनी करती है तो उसे ब्रांड का नाम दिया जाता है। वही सामान जब
कोई ग्रामीण व्यक्ति बनाता है तो उसका उसे मूल्य नहीं मिलता लेकिन जब यही काम किसी
ब्रांड के नाम से बाजार में आता है तो उसे लोग स्टेट्स के नाम पर खरीद लेते हैं।
उसका अधिक से अधिक लाभ उन सभी लोगों को जाता है जो इसकी ब्रांडिंग करते हैं। लेकिन
उस बने हुये समान में किस-किस व्यक्ति श्रम का इस्तेमाल किया गया है। जिसमें किसी
भी वस्तु के बनने की प्रक्रिया में जंगल से लाया गया रॉ-मटेरियल से लेकर उसे बाजार
तक पहुँचने तक की प्रक्रिया शामिल है। इन्हीं लोगों की खोज करना था। जो कि इंपैथी मैप के माध्यम से संभव हो सकता था। इसके साथ
ही यह देखने कि आवश्यकता थी कि इन व्यवसायों को किन लोगों से अधिक नुकसान हुआ है।
Stakeholder’s को
खोजने के बाद के अभी टीमों को उससे संबंधित एक कोलाज को बनाना था। यह बहुत ही
मनोरंजन भरा काम था। इसे बनाने के लिए पेपर कटिंग कर उसे अपने विषय के साथ जोड़ना
था।इस डिजाइन कार्यशाला के माध्यम से प्रतिभागियों के अन्दर शैक्षणिक नवीनता और
उससे सीखने का रोमांचित अनुभव प्राप्त हुआ ।
नरेश कुमार गौतम
समाज कार्य (पी-एच. डी. शोध छात्र)
महात्मा
गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा
nareshgautam0071@gmail.com
bahut badhiya nresh gautam
ReplyDeleteसराहनीय कदम
ReplyDeleteप्रतिभागियों को बधाई
Awesome work Naresh . You did a splendid job.Keep it brother ,It will enlighten the viewers .
ReplyDeleteKeep Posting :)