Thursday, April 26, 2018

बा-बापू जयंती के 150 वर्ष को याद करने की रस्म अदायगी से हमें बाहर निकलना होगा : प्रो. गिरीश्वर मिश्र

वर्धा, 26 अप्रैल. महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय एवं गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में तीन दिवसीय बा-बापू 150 वीं जयंती तैयारी बैठक सह कार्यशाला का प्रारंभ हुआ. कार्यक्रम का आरंभ महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र, पीसफुल सोसाएटी, गोवा के कलानंद मणि, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ के प्रो. शाहिद अली के द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलन से हुआ. महात्मा गाँधी फ्यूजी गुरूजी सामाजिक कार्य अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. मनोज कुमार ने सामूहिक रूप से सर्वधर्म प्रार्थना कराया.
उदघाटन सत्र का संचालन करते हुए डॉ. मिथिलेश कुमार ने नई दिल्ली में 12 से 15 मार्च को राष्ट्रीय स्तर पर हुए बा-बापू 150वीं जयंती तैयारी बैठक का संक्षिप्त सार पेश किया. प्रो. मनोज कुमार ने उदघाटन सत्र को शुरू करते हुए कहा कि सन 1869 ई. में बा-बापू दोनों का जन्म हुआ था. 2019 में इन दोनों विभूतियों की जयंती के 150 साल पूरे हो रहे हैं. उन्होंने छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों से आए हुए सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया.
कलानंद मणि ने उक्त मौके पर कहा कि 2 अक्तूबर 2019 बा-बापू के जीवन के 150 वर्ष को पूरे हो रहे हैं. आज कोई यह सवाल कर सकता है कि हम उन्हें क्यों याद करें? उन्होंने पेरिस और कोपेनहेगन के पर्यावरण सम्मलेन के अपने अनुभवों की चर्चा करते हुए बताया कि इन दोनों सम्मेलनों में पाकिस्तान के प्रतिनिधियों के मेरे अनुभव ने गाँधी की महत्ता पर नए सिरे से विचार करने पर बाध्य कर दिया. उन्होंने महात्मा गाँधी के चर्चित जीवनी लेखक बी.आर.नंदा के हवाले से गाँधी के कुछ चुनिन्दा संस्मरणों का उल्लेख करते हुए बा-बापू की 150 वीं जयंती मनाए जाने की महत्ता पर प्रकाश डाला. उन्होंने गाँधी के दक्षिण अफ्रीका के रचनात्मक संघर्ष का उल्लेख करते हुए कहा कि गाँधी ने वहां न केवल सत्याग्रह ही किया बल्कि दो-दो संस्थाओं की रचना भी की. दक्षिण अफ्रीका के सफल सत्याग्रह के बाद गाँधी भारत वापस लौटे तो यहाँ चल रहे स्वतंत्रता आन्दोलन के नेताओं से मिलते हैं. उन्होंने गाँधी के द्वारा1909 में रचित हिन्द स्वराज्य नामक पुस्तिका की चर्चा की. इस पुस्तिका में गाँधी ने पश्चिमी भौतिकवादी सभ्यता को नकारते हुए उसे शैतानी सभ्यता करार दिया और स्वराज्य की संक्षिप्त रुपरेखा पेश की थी. उन्होंने कहा कि गाँधी ने आधुनिक सभ्यता से होने वाले जिस नुकसान की तरफ इशारा किया था आज वह पूरी तरह से हमारे सामने है. आगे उन्होंने कहा कि कस्तूरबा के साथ ने गाँधी को विशाल बनाया था. आज बा-बापू के विचारों व उनके संघर्षों को नये सन्दर्भों में याद करने की आवश्यकता है. अपने वक्तव्य के अंत में उन्होंने इस तीन दिवसीय बैठक से संबंधित आवश्यक निर्देश दिया.
उद्घाटन सत्र में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि गाँधी हमारे अनुभव के अंग हो सकते हैं. आज समकालीन समस्याओं को लेकर तरह-तरह की चिंताएं व्यक्त की जाती हैं. इसका सरोकार हमारे जीवन-दर्शन से है. आज चौतरफा समस्याओं से मुक्ति की कोशिशें चल रही है. महात्मा गाँधी ने अपने समय में समस्याओं को मिटाने हेतु जो प्रयत्न किया, उससे आज हम काफी लाभान्वित हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि देश में अन्य किस्म की असमानता तो व्याप्त है ही इसके साथ ही व्यवहार और विचार के स्तर पर भी काफी विपन्नता आयी है. आज काफी चिंताजनक विसंगतियां सामने आ रही है. मानवीय आचरण का जो स्खलन हो रहा है, वह परेशान कर देने वाला है. उन्होंने कहा कि ऐसी कठिन परिस्थिति में हमें बा-बापू के जीवन-दर्शन को नए सिरे से स्थापित करना होगा. बा-बापू को याद करने की रस्म अदायगी से हमें बाहर निकलना होगा और उन्हें संजीदा ढंग से याद करना होगा.
आगे उन्होंने मौजूदा राजनीति, मीडिया आदि की भूमिका पर भी चिंता प्रकट करते हुए कहा कि हमें यथार्थ से दूर ले जाया जा रहा है. हमें इसके रचनात्मक उपयोग पर विचार करना होगा. बा-बापू के संस्मरण को जीवन का रचनात्मक अंग बनाने के बारे में भी हमें सोचना होगा. बा-बापू हमारे देश-समाज और संस्कृति के लिए जरुरी हैं. आज उपभोक्तावादी संस्कृति एक प्रकार से गैर-जरुरी आवश्यकताओं को बढ़ा रही है. इस विचित्र समय में हमें गाँधी के उस वक्तव्य जिसमें उन्होंने कहा था कि- “धरती हममें से हर किसी की आवश्यकता तो पूरी कर सकती है किन्तु लोभ किसी एक का भी नहीं” पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा. क्योंकि धरती पर संसाधन अनंत नहीं है, यह सीमित है. संसाधनों का अंधाधुंध दोहन अत्यंत ही खतरनाक साबित हो सकता है. उन्होंने वर्तमान बाजारवाद की विसंगतियों की तरफ सबों का ध्यान खींचते हुए कहा कि गाँधी के आर्थिक चिंतन, जिसे जे.सी.कुमारप्पा ने विकसित किया था, की प्रासंगिकता आज काफी बढ़ गई है. पृथ्वी की जीवन अवधि को बढ़ाने के लिए यह जरुरी हो गया है. आज बेरोजगारी जिस रफ़्तार से बढ़ रही है, उसका समाधान भी गाँधी के चिंतन में देखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि टेक्नॉलोजी जिस अनुपात में बढ़ती जाती है उसी मात्रा में बेकारी भी बढ़ती जाती है. अगर हमें स्वावलंबन चाहिए तो इसे गाँधी से सीखना पड़ेगा. गाँधी ने हमें स्वावलंबन का मंत्र दिया था. गाँधी हमारे लिए दूर नहीं, बल्कि एकदम निकट हैं. अगर हम अच्छा पर्यावरण चाहते हैं, सुन्दर देश-दुनिया चाहते हैं तो हमें गाँधी से सबक लेना होगा.  अंत में उन्होंने यह उम्मीद जताई कि इस तीन दिवसीय तैयारी बैठक से कार्यक्रम की ठोस रुपरेखा सामने आएगी. अध्यक्षीय वक्तव्य के उपरांत इस सत्र का समापन हुआ. 
रिपोर्टिंग टीम : डॉ. मुकेश कुमार, नरेश गौतम, डिसेंट कुमार साहू एवं अतुल श्रीवास्तव

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