Thursday, October 4, 2018

संविधान,समाज और गांधी



वर्धा,3 अक्टूबर 2018। गांधी जयंती के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के गालिब सभागार मे संविधान,समाज और गांधी विषयक संगोष्ठी आयोजित हुई। संगोष्ठी की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो . गिरीश्वर मिश्र ने की। मुख्य वक्ता के बतौर प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं संविधान विशेषज्ञ प्रो. एम. एल. कासारे मौजूद थे। संगोष्ठी का संचालन विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. सुरजीत कुमार सिंह ने की। सूत की माला पहनाकर स्वागत किया गया।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुये महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी सामाज कार्य अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. मनोज कुमार ने कहा की  संविधान समाज के लिए होता है। संविधान कितना लागू हो पाया, कितना समयानुकूल। समाज के विकास के लिए संविधान की भूमिका पर नए सिरे से विमर्श की जरूरत है। संविधान मे निरंतर सुविधा नुसार, संकुचिता किया जाता है।
सत्ता आज निरंकुश हुआ है। लोकतन्त्र मे सत्याग्रह की भूमिका है। लोकतन्त्र आज कितना पारदर्शी हुआ है। ये सारे पहलू है जिस पर गहराई मे जा कर चिंतन करने की जरूरत है। लोकतंत्र मे असहमति के लिए भी समुचित स्थान होना चाहिए।
प्रो. नंदकिशोर आचार्य ने संगोष्ठी को संबोषित करते हुये कहा की, किसी भी  समाज मे संविधान की आवश्यकता क्यों होती है ? हजारों वर्षो पुराने समाज मे तरह तरह के मर्यादाएं रहती है। स्वतन्त्रता आंदोलन के दौरान वर्तमान भारत की रूप रेखा निर्मित हुई। गांधी संसदीय लोकतंत्र के पक्ष मे नही थे। संसद समस्याओं को बदलती रहती है, वह समस्याओं को निर्मूल नही करती । किन्तु तात्कालिक तौर पर गांधी संसदीय प्रणाली को  स्वीकार करते थे। सम्पूर्ण प्रभुसत्ता को एक जगह केन्द्रित कर देना गांधी की परंपरा नही थी। जब संविधान बना उसमे गांधी काही दिखाई नहीं देते। संविधान का बड़ा हिस्सा 1935 का अधिनियम है। भारतीय समाज मे परभुसत्ता केन्द्रित नही होती थी। चक्रवती सम्राट के दौर मे भी यही स्थिति थी।
याज्ञवल्कय स्मृती  के उदाहरण के जरिये भी उन्होने इसकी पुष्टि की। आधुनिक संदर्भ मे इसका अर्थ यह है की, एक विकेंद्रीकृत शासन  प्रणाली होनी चाहिए । गांधी ने इसी की बात की थी। विधायिका,न्यायपालिका एवं कार्य पालिका को भी विकेंद्रीकृत करने के पक्षधर थे । लोकतन्त्र मे प्रत्येक व्यक्ति का महत्व है । किन्तु लोकतंत्र जब केन्द्रित हो जाता है तो वह खतरनाक होता है। दुनिया का अनुभव बताता है की संसदीय लोकतंत्र तानाशाही स्थापित होने का खतरा बना रहता है। उन्होने कहा की भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों ने गांधी के पंचयाती राज की कल्पना को शामिल किया गया । किन्तु गांधी पंचायतों को पूर्ण स्वाययत्ता की बात कहे थे किन्तु वर्तमान पंचायत इससे भिन्न है। वर्तमान पंचायत राज्य के एजेंट की भूमिका मे है। लोकतंत्र वास्तविक अर्थ मे जनता की सहभागिता का नाम है।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रो. एम. एल. कासारे ने अपने सम्बोधन मे कहा की, महात्मा गांधी और डॉ. आंबेडकर के सम्बन्धों के बारे मे जानना आवश्यक है। डॉ. आंबेडकर ने गोलमेज़ सम्मेलन मे भारत की पूरी आज़ादी की मांग की थी। इसके बाद गांधी ने डॉ. आंबेडकर से मिलनेकी इच्छा व्यक्त की थी । डॉ. आंबेड़कर  उनसे मिले थे। गांधी ने उन्हे महान देश भक्त बताया था। दूसरे गोलमेज़ सम्मेलन के बाद गांधी और आंबेडकर के बीच पुना पेक्ट के बीच दूसरी मुलाक़ात हुई। 1936 मे सेवाग्राम आश्रम मे डॉ. आंबेड़कर  और गांधी के बीच आखरी मुलाक़ात हुई। डॉ. अंबेडकर ने इस मुलाक़ात मे गणफ़्हि से यह वादा किया था की उनका धर्म परिवर्तन से देश की एकता अखंडता को कोई नुकसान नही पाहुचेगा। 1935 के अधिनियम के निर्माण मे भी डॉ. अंबेडकर की महत्वपूर्ण भूमिका थी। जब भारत का संविधान बनाने की बारी आयी तो नेहरू जी, प्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ एडवर्ड जेनिंग को संविधान निर्माण की ज़िम्मेदारी देना चाहते थे। किन्तु गांधी ने नेहरू से डॉ. आंबेडकर को संविधान निर्मिति सभा अध्यक्ष बनने की बात की थी।  भारत मे जनतंत्र है , इसका सारा श्रेय भारत के संविधान को जाता है। भारत मे सामाजिक लोकतन्त्र का अभाव है। यहा का सामाजिक नियतिवाद सामाजिक लोकतन्त्र स्थापित करने की दिशा मे बाधक है। भारतीय संविधान मे न्याय, स्वतन्त्रता, समानता और बंधुत्वका मूल भाव निहित है। भारतीय संविधान ने जाती व्यवस्था पर गंभीर चोट किया है। भारतीय संविधान समाज व्यवस्था के रिपनतर का घोषणा पत्र है।

आगे उन्होने कहा की , भारतीय एकात्मता अत्यंत ही कमजोर है। यहाँ स्तरीय असमानता  मौजूद है। जातिवाद और समप्रदयिकता जैसी चीजें यहाँ मौजूद है। भारत मे आज भी यह समस्याएँ है, जो बेहतर समाज बनाने की दिशा मे रोड़े अटकाती है। धर्म निरपेक्ष राज्य, धर्म निरपेक्ष समाज और धर्म निरपेक्ष संस्कृति विकसित करना होगा। सदियों पुराने मुल्य आज कलबाहय हो गए है, उसके जगह पर नए न्याय पूर्ण मुल्य अपनाने की जरूरत है।   अपने अध्यक्षीय वक्तव्य मे कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने कहा की स्वतन्त्रता का अर्थ स्वछ्न्दता नही है। भारत के संविधान का पालन करना सभी नागरिकों का दायित्व है । संविधान के संशोधन की भी व्यवस्था हो, संविधान जड़ नही है। भारतीय संविधान गांधीजी के सर्वधर्म समभाव को फलीभूत करना है। गांधी अपने व्यवहार मे सर्वधर्म समभाव का अद्भुत ढ़ंग से पालन करते थे। ऐसे महान भारतीयों की परंपरा को हमलोग अपने जीवन मे उतारें।
       आभार ज्ञापन प्रो. मनोज कुमार ने किया ।

No comments:

Post a Comment