वर्धा, 11 अप्रैल, 2018. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के महात्मा गांधी फ्यूजी गुरूजी सामाजिक कार्य अध्ययन केंद्र में महात्मा ज्योतिबा फुले एवं कस्तूरबा गांधी की जयंती मनाई गई। दोनों महान विभूतियों के जीवन-संघर्षों को याद करते हुए उक्त अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. आनंदवर्द्धन शर्मा ने कहा कि आज भारत के इतिहास का अति महत्वपूर्ण दिन है। आज देश के विभिन्न हिस्सों में कई महान विभूतियों का जन्म हुआ था। आज ही के दिन गांधीजी की सहधर्मिनी कस्तूरबा गांधी का जन्म हुआ था। आज ही महात्मा ज्योतिबा फुले और राहुल सांकृत्यायन की भी जयंती है। उन्होंने कहा कि महान कार्य करने वाली आत्माओं को ही महात्मा की संज्ञा से विभूषित किया जाता है। महात्मा फुले ने शिक्षा के लिए अद्वितीय कार्य किए हैं। राष्ट्र निर्माण की दृष्टि से उनके कार्य आज भी हमारे लिए पथ-प्रदर्शक हैं। स्त्री शिक्षा के लिए किए गए उनके कार्यों व संघर्षों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। आगे उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र की धरती हमेशा से विभूतियों की धरती रही है। कई महापुरूष या तो सीधे यहीं पैदा हुए हैं अथवा कई एक की यह कर्मभूमि रही है। महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले की यह जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों रही है। वहीं यह बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी एवं कस्तूरबा गांधी की यह कर्मभूमि रही है। उन्होंने छात्र-छात्राओं से कहा कि उन्हें महापुरूषों की जन्मभूमि व कर्मभूमि का दर्शन करने जाना चाहिए। ये स्थल आज भी हमें आज भी प्रेरित करते हैं। उन्होंने देशभर में महापुरूषों की जन्मभूमि और कर्मभूमि से जुड़े अपने अनुभवों को छात्र-छात्राओं से साझा किया। उन्होंने बताया कि हमारे महापुरूषों के जीवन में हमें कथनी और करनी के बीच गहरा तालमेल देखने को मिलता है। उन्होंने यह भी कहा कि महापुरूषों को किसी जाति-धर्म-संप्रदाय अथवा देश-काल की सीमाओं तक सीमित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने सभी छात्र-छात्राओं से महात्मा फुले और कस्तुरबा गांधी सरीखे महापुरूषों से संबंधित साहित्य का अध्ययन करने और उससे प्रेरणा गृहन करने की बात कही। अंत में उन्होंने कहा कि हमें अपने इन महापुरूषों से मानवता और भ्रातृत्व का संदेश सीखना चाहिए।
विभाग की छात्रा माधुरी श्रीवास्तव ने कस्तूरबा गांधी के ईव्न संघर्ष की विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि कस्तूरबा महान समाज सेविका थी। उन्होंने महात्मा गांधी का कदम-कदम पर साथ दिया था। कस्तूरबा का जीवन-संघर्ष हमें आज भी प्रेरित करता है। वहीं विभाग की छात्रा सुजाता थुल ने कहा कि महात्मा फुले ने न केलव दलितों-पिछड़ों के लिए ही काम किया था अपितु महिलाओं की शिक्षा में उनका अभूतपूर्व योगदान है। उसी प्रकार कस्तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी के साथ देश की आजादी की आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान था। एमफिल शोधार्थी राजन प्रकाश ने कहा कि थासम पेन की रचनाओं का महात्मा फुले एवं सावित्री फुले पर काफी प्रभाव था। विभाग के ही एमएसडब्ल्यू के छात्र रविचन्द्र ने कहा कि आज पूरे देश में महात्मा फूले की 191 वीं जयंती मनाई जा रही है। फुले ने ऐसे तबके के लिए शिक्षा का मार्ग खोला था जिन्हें उस वक्त तक शिक्षा के वंचित रखा गया था। किन्तु नव उदारवादी नीतियों की आड़ में आज शिक्षा के निजीकरण के नाम पर एक बार फिर आम लोगों के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद किए जा रहा है।
संगोष्ठी के अंत में धन्यवाद ज्ञापन विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. मिथिलेश कुमार ने तथा संचालन डॉ. मुकेश कुमार ने किया। उक्त अवसर पर विभाग के प्राध्यापक डॉ. शिवसिंह बघेल, गजानन निलामे, डॉ. पल्लवी शुक्ला आदि उपस्थित थे। संगोष्ठी में विभाग के दर्जनों पी-एच.डी, एम फिल, एम.एस.डब्ल्यू. एवं बी.एस.डब्ल्यू की छात्र-छात्राएं शामिल हुए।
रिपोर्टिंग टीम- डॉ मुकेश कुमार, नरेश गौतम, डिसेंट साहू
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