महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी
विश्वविद्यालय में सामाजिक कार्य अध्ययन केंद्र के अंतर्गत 16 सितंबर को 'एलजीबीटीक्यू+ समुदाय एवं उनके मानवाधिकार' विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम
में मुख्य वक्ता के रूप में छत्तीसगढ़ वेलफ़ेयर बोर्ड की सदस्य रवीना बरिहा, सारथी ट्रस्ट नागपुर के सदस्य आनंद चंद्राणी व
छत्तीसगढ़ से ही ट्रान्सजेंडर सामाजिक कार्यकर्ता शंकर यादव ने अपनी बात रखी। इस
कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्र निदेशक प्रो. मनोज कुमार ने की। सर्वप्रथम आनंद
चंद्राणी ने अपनी बात रखते हुए धारा 377 के बारे में बताया व कैसे इस कानून से
एलजीबीटीक्यू+ समुदाय प्रभावित होते रहे हैं। आगे उन्होंने बताया कि इस कानून के
कारण लोग अपनी यौन रुझान को लेकर शर्म, झिझक व अपराधबोध की स्थिति में रहते हैं। इसका असर यह होता है कि व्यक्ति
में एक असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है कि उसका यौन रुझान सही है या नहीं या
उसकी तरह वह अकेला ही है या और भी लोग हैं। लोगों द्वारा भी उन्हें कलंकित होना
पड़ता है ऐसे स्थिति में वह कई बार आत्महत्या तक भी कर लेते हैं। 12 साल के अनुभवों
को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि ज़्यादातर लोग समलैंगिकता को
प्राकृतिक-अप्राकृतिक या संक्रामक बीमारी के रूप में देखते हैं। उन्होंने यह
स्पष्ट किया कि यह कोई बीमारी नहीं हैं और इससे मानव समाज को कोई खतरा भी नहीं है।
अगले वक्ता के रूप में रवीना बरिहा ने
अपनी बात की शुरुआत अपनी स्वरचित कविता से करते हुए ट्रान्सजेंडर समुदाय के दर्द
को श्रोताओं के सामने रखा व इस पितृसत्तात्मक समाज को कठघरे में खड़ा किया। इसके
बाद उन्होंने कहा कि हम उतना ही जानते-समझते हैं जो हमारे सामने मौजूद है और हम उन
सभी चीजों को नकार देते हैं जिनके बारे में हम नहीं जानते। उन्होंने कहा कि यह
दुनिया बहुत बड़ी है और इसमें उतनी ही विविधता है। हमारी ज्ञान के सीमित दायरे के
कारण ही ट्रान्सजेंडर समुदाय पीड़ित है। जेंडर भूमिका समाजीकरण का हिस्सा है और
इसकी शुरुआत बच्चे के जन्म के साथ ही हो जाती है। हम बच्चे को स्त्री-पुरुष
व्यवहार के एक खास ढांचे में प्रशिक्षित करते हैं और जो इस ढांचे को स्वीकार नहीं
करता उसे हम समाज से बहिष्कृत कर देते हैं। आगे उन्होंने कहा कि ट्रान्सजेंडर
व्यक्ति ही वे लोग हैं जो इस खांचे को तोड़ते हैं। उन्होंने समाज में ट्रान्सजेंडर
को लेकर भ्रांतियों के बारे में भी बात की। किस तरह लोग ट्रान्सजेंडर का मतलब
सोचते हैं कि वह बच्चा को अंतरलिंगी (intersex)
हो। जबकि ऐसे बच्चों का जेंडर निर्धारण उनके बड़े
होने के बाद वे खुद करते हैं। उन्होंने नालसा जजमेंट का हवाला देते हुए बताया कि
ट्रांसजेंडर वे व्यक्ति है जो जन्म से मिले जैविक लिंग के विपरीत व्यवहार करते
हैं। हम स्त्रैण व्यवहार के आधार पर किसी को भी ट्रान्सजेंडर नहीं कह सकते। जब तक
कि वह व्यक्ति खुद के पहचान को निर्धारित नहीं करता है। उन्होंने ट्रान्सजेंडर
समुदाय के उल्लेख को मिथकीय ग्रन्थों से लेकर आधुनिक साहित्य तक बताया।
आगे उन्होंने धारा 377 को स्पष्ट करते
हुए कहा कि यह कानून जितना प्रभावित एलजीबीटीक्यू+ समुदाय को करता है उतना ही
प्रभावित यह विषमलैंगिक समुदाय को करता है। यह समाज का समलैंगिकता से डर ही है
जिसके कारण इसे खास समुदायों से जोड़कर प्रचारित-प्रसारित किया जाता रहा है। इसके
साथ ही उन्होंने ट्रान्सजेंडर समुदाय के साथ होने वाले दुर्व्यवहार व मानवाधिकार
हनन के मुद्दों को विस्तार से श्रोताओं के सामने रखा। अंत में अपनी बातों को रखते
हुए रवीना ने असमानता, असंवेदनशीलता
व अपरिपक्वता को सामाजिक विघटन का प्रमुख कारण बताते हुये अपनी बात को ख़त्म किया।
अगले वक्ता के रूप में शंकर ने अपने
बचपन से लेकर अब तक के अनुभवों को साझा किया। उन्होंने श्रोताओं के सामने अपनी
पहचान रखते हुए कहा कि वो ट्रान्सजेंडर हैं और परिवार में सिर्फ इसीलिए स्वीकार है
चूंकि अभी भी वो पेंट-शर्ट में रहते हैं। इस तरह से उसे दोहरी ज़िंदगी व्यतित करनी
पड़ रही है। उन्होंने आगे कहा कि उसके स्त्रैण व्यवहार के कारण उसे स्कूल में हमेशा
चिढ़ाया गया व उसका यौन शोषण भी किया गया। इसके बाद विजय जी ने अपनी बाद रखी जो
वर्धा में संचालित संस्था के सदस्य है।
अध्यक्षीय वक्तव्य रखते हुए प्रो. मनोज
कुमार (निदेशक, महात्मा
गांधी फ्यूजी गुरुजी सामाजिक अध्ययन केंद) ने कहा कि समाज को अपना नजरिया बदलना
पड़ेगा खास कर समाज कार्य के विद्यार्थियों और शोधार्थियों को, समाज की हर तरह की विभिन्नताओं के बीच काम करने के
लिए अपने आप को तैयार करना होगा। तथा सामाजिक क्रिया को बढावा देना होगा जिससे लोग
परिवर्तनों को स्वीकार कर सकें।
इस कार्यक्रम का मंच का संचालन डिसेन्ट
कुमार साहू ने किया एवं आभार ज्ञापन नरेश कुमार गौतम ने किया। उक्त कार्यक्रम में
विश्वविद्यालय के प्राध्यापकगण, शोधार्थी
एवं छात्र-छात्राएं भारी संख्या में मौजूद थे।
खुशबू साहू और शिवानी अग्रवाल
शोधार्थी समाज कार्य