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Thursday, October 4, 2018

गाँधी जीवन दृष्टि एवं प्रयोग



वर्धा, 2 अक्टूबर 2018। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 वी जयंती के अवसर पर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के गालिब सभागार में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। गांधी का आलोकविषयक इस एक दिवसीय परिचर्चा में गाँधी जीवन दृष्टि एवं प्रयोगविषयक दूसरे चर्चा सत्र का संचालन गाँधी एवं शांति अध्ययन विभाग के प्राध्यापक डॉ. धूपनाथ प्रसाद ने किया। सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ट पत्रकार अरविन्द मोहन, विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. अरमेंद्र शर्मा एवं ऋषभ मिश्र उपस्थिति थे। सत्र की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के प्रो. अनिल कुमार राय ने की।
सत्र को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अरमेंद्र शर्मा ने कहा कि गाँधी का निजी जीवन नहीं रहा है। गाँधी की पूरी जीवन-पद्धति में निजी और सार्वजनिक के बीच का भेद मिट गया प्रतीत होता है। उनकी ज़िन्दगी में कुछ भी छिपा हुआ नहीं है। गाँधी सतत प्रयोगशील रहे। गाँधी ने अंतिम सत्य का दावा नहीं किया। उनके चिंतन में गतिशीलता है। इसलिए गाँधी को समझने के लिए इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। गाँधी हमेंशा आम जनता के पक्ष में रहे। उनसे हमें यह प्रेरणा प्राप्त होती है। अंत में उन्होंने कहा कि इस बात का ख्याल रखा जाना चाहिए कि गाँधी की प्रयोगधर्मिता आज भी बनी रहनी चाहिए।
सत्र के अगले वक्ता शिक्षा विद्यापीठ के प्राध्यापक ऋषभ मिश्र ने कहा कि बुनियादी शिक्षा गांधीजी की अनुपम देन है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आजाद भारत में बुनियादी तालीम को तिलांजलि दे दी गयी। गाँधी के बुनियादी तालीम का विचार मौजूदा शिक्षा व्यवस्था से भिन्न है। मौजूदा शिक्षा व्यवस्था मनुष्य को अपनी जड़ों से, अपनी संस्कृति से अलग करती है। पाश्चात्य शिक्षा श्रम से काटती है। गाँधी बच्चे को मातृभाषा में परिवार के बीच रहकर उद्योगमूलक शिक्षा देने की बात करते हैं। स्वावलंबन उनकी शिक्षा की अनिवार्य शर्त है। गाँधी की बुनियादी तालीम का दर्शन और प्रयोग हमारे लिए काफी उपयोगी है। यह शिक्षा हमें जीवन और जीविका दोनों के लिए तैयार करती है ।
सत्र के मुख्य वक्ता चर्चित वरिष्ट पत्रकार-लेखक अरविन्द मोहन ने भारत में गाँधी के प्रथम सत्याग्रह- चंपारण सत्याग्रह की सूक्ष्म चर्चा की और उससे निकलने वाली प्रेरणा की शिनाख्त की। गाँधी के संचार कौशल की भी उन्होंने विस्तृत चर्चा की। तार, चिट्ठी आदि का संचार के रूप में गाँधी भरपूर प्रयोग करते हैं। उन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य के संचार तकनीक की भी संक्षिप्त चर्चा की। रेल-मार्ग, सड़क मार्ग, जलमार्ग और दूरसंचार आदि के विकास की भी संक्षिप्त चर्चा की। चंपारण में मोहम्मद मुनिस की संचार में भूमिका पर भी उन्होंने प्रकाश डाला डाला। उन्होंने बताया कि गाँधी के संचार कौशल और संचार की ईमानदारी ने अंग्रेजों के मनसूबे को नाकाम कर दिया। गाँधी ने अपने व्यक्तित्व से भी लोगों से आसानी से संपर्क स्थापित कर लिया। उनके कथनी और करनी में समानता ने भी आम लोगों में प्रभाव स्थापित किया। गाँधी ने बिना किसी अफवाह और अतिरेक के संचार किया और अंग्रेजों के साथ- साथ चंपारण के किसानों का भी भरोसा हासिल किया। गाँधी के चंपारण के प्रयोग से हमें  आज भी काफी सिख मिलती है।

अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो.अनिल कुमार राय ने कहा कि गाँधी के विचार एवं जीवनप्रयोग को उस वक्त के देशकाल- परिस्थिति के आधार पर समझने की जरुरत है। किन्तु यह भी सच है कि गांधी ने देशकाल- परिस्थिति का खुद ही अतिक्रमण किया। गाँधी ने भारतीय परंपरा के साथसाथ पश्चिमी परंपरा के भी उद्दात मूल्यों को ग्रहण किया था। गाँधी के विचार को किसी वाद में नहीं बांधा जा सकता है। गांधी का व्यक्तित्व अत्यंत ही उद्दात था। आज भी हमें उनका जीवन और चिंतन प्रेरणा प्रदान करता है।
संगोष्ठी में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के शिक्षकों एवं सैकड़ों छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया।

रिपोर्टिंग टीम : डॉ. मुकेश कुमार, प्रेरित बाथरी, माधुरी श्रीवास्तव, खुशबू साहू, अजय गौतम, अक्षय कदम, सुधीर कुमार, मोहिता एवं सपना पाठक

Saturday, April 28, 2018

तीन दिवसीय बा-बापू 150वीं जयंती तैयारी बैठक का दूसरा दिन

वर्धा 27 अप्रैल. पीसफुल सोसाइटी, गोवा के किशन के द्वारा मुरारी शरण द्वारा रचित ‘नदियाँ धीरे बहो’ गीत गायन से दूसरे दिन के सत्र का प्रारंभ हुआ. सत्र के प्रारंभ में डॉ. मुकेश कुमार ने 26 अप्रैल की पूरी चर्चा का संक्षिप्त सार पेश किया. उसके उपरांत कलानंद मणि ने गाँधी के रचनात्मक कार्यक्रमों के आलोक में सात मुद्दों पर समूह चर्चा हेतु सात समूह प्रस्तावित किया.
सामाजिक
आर्थिक
शैक्षणिक
आरोग्य
एकादश व्रत
गाँधी के विचारों-मूल्यों-प्रयोगों पर शोध
गाँधी के विरुद्ध होने वाली बातों का सार्थक उत्तर स्वरूप गतिविधियाँ
कौमी एकता,
अस्पृश्यता निवारण,
महिलाएं,
आदिवासी
आर्थिक समानता,
खादी,
ग्रामोद्योग,
किसान,
मजदूर

बुनियादी तालीम,
राष्ट्रभाषा,
मातृभाषा,
प्रांतीय भाषा,
वयस्क शिक्षा

आरोग्य की शिक्षा,
नशाबंदी,
ग्रामीण स्वच्छता,
कुष्ट रोग निवारण,
एड्स निवारण 
सत्य,
अहिंसा,
अस्तेय,
ब्रह्मचर्य,
अपरिग्रह,
स्वदेशी,
अभय,
सर्वधर्म समभाव, अस्पृश्यता निवारण, शरीर श्रम, अस्वाद



·      ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा मिलना चाहिए. आज सारी चीजें बड़े उद्योगों में पैदा हो रही हैं. जबकि आम लोगों की ज़रूरतों के ज्यादातर सामान गाँव में बनाया जा सकता है.·      खादी एक वस्त्र ही नहीं विचार भी है. यह विकेन्द्रित उद्योग में बनता है. हर गाँव में खादी बनने का कार्य हो, इसका डिजाईन तैयार हो. सरकारी संस्थानों में इसके उपयोग को बढ़ावा मिले. खादी के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था हो.आर्थिक मुद्दे पर समूह चर्चा की रिपोर्ट :
·      आज बीज, खाद व कीटनाशक आदि पर बाज़ार का नियंत्रण हो चुका है. किसानों के पास से यह सब छिन गया है. किसानों को अनाज उत्पादन का वाजिब मूल्य नहीं मिल पा रहा है. किसानों के हितों को संरक्षण मिलना चाहिए.
·      मजदूर का शोषण न हो.
·      आर्थिक असमानता दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि संपत्ति रखने की सीमा निर्धारित होनी चाहिए.
               
सामाजिक मुद्दे पर समूह चर्चा की रिपोर्ट :
·      देश विभिन्न जाति, धर्म, सम्प्रदाय में सदियों से बंटा रहा है. आज साम्प्रदायिकता बढ़ती जा रही है इसके राजनीतिक कारण हैं.
·      धर्म, जाति के चुनावी इस्तेमाल पर रोक लगानी चाहिए.
·      भारतीय संविधान में दी गयी धार्मिक स्वतंत्रता के दुरुपयोग पर रोक लगे.
·      भारतीय संविधान की पुस्तक को घर-घर तक पहुँचाना होगा तभी अधिकारों और कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता आएगी.
·      अस्पृश्यता कोई वैज्ञानिक-तार्किक आधार नहीं है, यह एक किस्म की अंधश्रद्धा है. यह सामाजिक असमानता को बढ़ावा देती है. इसको खत्म करने के लिए कानून बने और इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए.
·      अंतरजातीय विवाह आदि को बढ़ावा देना चाहिए.
·      आदिवासियों की भाषा को संरक्षण दिया जाये. उनके बच्चों को स्कूली शिक्षा उन्हीं की मातृभाषा में दी जानी चाहिए. आदिवासियों का वनों पर अधिकार सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
·      महिलाओं के बराबरी के अधिकार को लागू किया जाए. घर के बाहर या अंदर दोनों ही जगहों पर महिलाओं को समान अधिकार मिलना चाहिए.

शिक्षा के मुद्दे पर समूह चर्चा की रिपोर्ट :

·      बुनियादी शिक्षा / तालीम को फिर से शुरू किया जाना चाहिए :
शिक्षक शिक्षण में गाँधी दर्शन का दृष्टिकोण और उसके आधार पर मोड्यूल के निर्माण में अध्यापकों की भूमिका होनी चाहिए. शिक्षकों का गाँधी साहित्य के साथ परिचय कराया जाना चाहिए. नई तालीम की अनुसंधानपरक प्रस्तुति. शैक्षिक वातावरण में असहमति के लिए जगह होनी चाहिए. गांधीजी की नई तालीम से असहमति नहीं है किंतु नई तालीम में समयानुरूप बदलाव भी जरुरी है. सेवापूर्व शिक्षकों को नई तालीम से परिचय कराया जाए. निशुल्क शिक्षा की गारंटी हो. मातृभाषा में शिक्षा मिले. उत्पादकता से छात्र जुड़ें. प्रत्येक विश्वविद्यालय ने केंद्र सरकार के निर्देशानुसार पाँच गावों को गोद लिया है. उन गावों में स्थित सरकारी प्राथमिक विद्यालय एवं माध्यमिक विद्यालयों में विश्वविद्यालय को जोड़ा जाए.

·      वयस्क शिक्षा :
वयस्क शिक्षा के लिए पूर्व में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा योजना लायी गयी थी उस योजना को पूर्ववत लागू करने का प्रस्ताव है ताकि विश्वविद्यालय और महाविद्यालय अपने-अपने क्षेत्रों में वयस्क एवं सतत शिक्षा के लिए नीति आधारित कार्य कर सकें.

·      प्रांतीय भाषा :
प्रांतीय भाषाओं में उपलब्ध गांधीवादी साहित्य और देशज ज्ञान पर आधारित साहित्य का अनुवाद हिंदी में उपलब्ध कराया जाए और हिंदी, अंग्रेजी तथा अन्य प्रादेशिक भाषाओं के साहित्य का अंतर अनुवाद भी किया जाए. इसके लिए कार्यशालाओं, परिचर्चा, वाद-विवाद, निबंध एवं अन्य समावेशी कार्यक्रमों का आयोजन ग्रामीण एवं शहरी स्तरों पर किया जाए जिसमें राज्य एवं केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को जिम्मेदारी दी जाए. बा-बापू पर आधारित साहित्य का रेडियो, नाटक, डोक्युमेंट्री एवं फिल्म निर्माण एवं प्रदर्शन के लिए कार्यक्रम बनाया जाए. प्रांतीय भाषाओं में जो भी आदिवासी भाषाओं में प्राप्त ज्ञान के संरक्षण के लिए उन भाषाओं का जतन किया जाए.

राष्ट्रीय भाषा :

राष्ट्रीय भाषा के साथ प्रांतीय भाषा की टकराहट का समाधान किया जाना चाहिए. भाषाई अस्मिता और टकराहट को सांस्कृतिक गतिविधियों द्वारा समझने और समझाने की कार्य योजना बनाई जाए. समस्त राज्यों के बीच मानव संसाधन एवं विकास विभाग-एमएचआरडी ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ कार्यक्रम की योजना प्रारंभ की है, उसमें गाँधी विचार का अंतर्भाव किया जाए अथवा ‘बा-बापू’ यात्रा कश्मीर से कन्याकुमारी तक के विविध राज्यों के विद्यार्थियों के नेतृत्व में निकाली जाए.
·      कलानंद मणी ने सुझाव दिया कि 30 जनवरी 2019 से भारत के कोने-कोने से एक यात्रा निकले जो 2 अक्टूबर 2019 को एक स्थान पर एकत्रित हो.

इस समूह में डॉ.शाहिद अली, डॉ.ऋषभ कुमार मिश्र, डॉ.धर्मेन्द्र शंभरकर, डॉ.राजेश लेहकपुरे, डॉ.अनुपमा कुमारी, रेहाना तबस्सुम, रफीक अली एवं संदीप मधुकर सपकाले शामिल थे.

समूह चर्चा के बीच सुरेश शर्मा द्वारा निर्देशित डाक्यूमेंट्री प्रदर्शित की गई. इसमें महात्मा गांधी के दांडी मार्च से लेकर सेवाग्राम आश्रम के बारे में संक्षेप में दिखाया गया है.

स्वास्थ्य समूह चर्चा :

क्या हम पारंपरिक स्वास्थ्य पद्धति के प्रयोगों के बारे में अध्ययन कर सकते हैं?
एकादश व्रत समूह चर्चा की रिपोर्ट :

·      विश्व अहिंसा के 10 वर्षों के कार्यक्रमों का दस्तावेजीकरण हो, जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों द्वारा किया गया हो.
·      वैयक्तिक हिंसा से वैश्विक हिंसा के माहौल को अहिंसा के माध्यम से शमन हेतु संकल्पित समाज बनाया जाना चाहिए.
·      ऐसे प्रभावी माध्यमों का उपयोग करते हुए सत्य के प्रयोग के प्रति माहौल तैयार किया जाना चाहिए.
·      एकादश व्रत के लोक व्यापीकरण हेतु सक्षम समूहों को तैयार करते हुए समाज में शिक्षण प्रबोधन की श्रृंखला चलाई जाए.
·      एकादश व्रत को सार्वजानिक कार्यक्रमों के पूर्व प्रस्तुत किया जाए.
·      प्रार्थना का भाव हमारे व्यक्तिगत एवं सार्वजानिक जीवन में अंगीकृत एवं उसका प्रकटीकरण हो.
·      संविधान की अनुसूची-8 में वर्णित सभी भाषाओं में मंगल प्रभात का अनुवाद हो.
·      एकादश व्रत को केवल उपदेशात्मक न होकर व्यावहारिक रूप में क्रियान्वित किया जाए.
गांधी को लेकर भ्रांतियां पर समूह चर्चा की रिपोर्ट :

विरोध:
·      भारत विभाजन का जिम्मेदार.
·      मुसलमानों के प्रति अधिक उदार होना.
·      दलित विरोधी थे.
·      पुणे एक्ट के सम्बन्ध में.
·      नेहरु के प्रति मोह और पटेल के प्रति द्वेष.
·      गैर वैज्ञानिक विचारधारा.
·      गांधीजी के ब्रह्मचर्य पर सवाल.
·      पूंजीपतियों के पक्षधर.
·      भगत सिंह को नहीं बचाया

जवाब :
·      ब्रिटिश सरकार हिन्दू मुस्लिम एकता को तोड़ना चाहती थी.
भारत के विभाजन में हिन्दू संगठन एवं मुस्लिम लीग या संगठन की अहम् भूमिका थी. गांधी ने जाति व धार्मिक संघर्षों को रोकने में भूमिका अदा की.
·      उदारता दुर्गुण नहीं, बल्कि सदगुण है. मुसलामानों के प्रति ही उदार नहीं वरन सभी दलित एवं पिछड़ों के प्रति सद्भाव होना चाहिए.
·      गांधी ने वर्ण व्यवस्था को समाप्त करने हेतु विशेष कार्य किया.
·      सवाल करने वालों से सवाल किया जाए उन्होंने समाज व देश के लिए क्या किया? आलोचना करना बहुत आसान है.


शोध में गांधी समूह चर्चा की रिपोर्ट :

सिनेमा में गांधी का अभिग्रहण
गांधी पर फिल्म/डाक्यूमेंट्री बने
शोध उपकरण के रूप में सिनेमा का प्रयोग किया जाए.
Gandhi in popular culture.
संकेत के रूप में गांधी
गांधी वांगमय की भूमिका का संकलन/संपादन
गांधी की आलोचनाओं की समीक्षा.
गांधी के समकालीन लोगों के कृतित्व को सामने लाना.
गांधी-लोहिया : प्रो. मनोज कुमार
गांधी-भगत सिंह : डॉ. अमित राय
गांधी अंबेडकर : डॉ. अमित विश्वास  
पूना पैक्ट : शैलेश
जे.पी. : सुरेश शर्मा
टैगोर : अमरेन्द्र कु. शर्मा
नेहरु : शम्भू जोशी
मीरा : सुप्रिया
सुभाष : चित्रा

कस्तूरबा की समकालीन महिलाओं का इतिहास लेखन
सुशीला नैय्यर : सुप्रिया

·      युवाओं के लिए प्रेरक प्रसंग
·      2 क्रेडिट का पाठ्यक्रम ugc द्वारा गांधी पर सुनिश्चित किया जाए
·      देश के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का सम्मलेन
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विश्वविद्यालय काशी,गुजरात –एक कार्यक्रम –एक बैठक- GSDS
·      गांधी वादी संस्थाओं पर शोध का कार्य हो.
·      MGCU गांधी कार्यक्रम प्रारम्भ करे.
·        गांधी को नाटक में, साहित्य में , डाक्यूमेंट्री आदि के साथ अनिवार्य रूप से लाना चाहिए
·      culture of peace व सत्याग्रह 2018-2019 को घोषित किया जाए
·      गांधी के शैक्षणिक प्रयोगों पर शोध हो.
·      हिंसा व प्रतिरोध के बदलते स्वरूप में गांधी
·      गांधी दर्शन में पुनर्चर्चा व उन्मुखीकरण
·      विदेशों में गांधी कार्य हेतु धनराशि एवं सहयोग
·      विदेशों में गांधी कार्य


कलानन्द मणि ने सूचित किया कि पूना में किसानों का संगठन बना है जिसकी पहुँच सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचा रहा है.
बसंत भाई ने नयी दिल्ली में 1व 2 मई को प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति से बापू की 150 वीं जयंती होने जा रही वार्ता का ज़िक्र किया. 


Thursday, April 12, 2018

महात्मा फुले और कस्तूरबा गांधी का जीवन-संघर्ष हमारे लिए पथ-प्रदर्शक है : प्रो. आनंदवर्द्धन शर्मा


वर्धा, 11 अप्रैल, 2018. महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी विश्‍वविद्यालय के महात्‍मा गांधी फ्यूजी गुरूजी सामाजिक कार्य अध्‍ययन केंद्र में महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले एवं कस्‍तूरबा गांधी की जयंती मनाई गई। दोनों महान विभूतियों के जीवन-संघर्षों को याद करते हुए उक्‍त अवसर पर संगोष्‍ठी का आयोजन हुआ। संगोष्‍ठी को संबोधित करते हुए विश्‍वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. आनंदवर्द्धन शर्मा ने कहा कि आज भारत के इतिहास का अति महत्वपूर्ण दिन है। आज देश के विभिन्न हिस्सों में कई महान विभूतियों का जन्‍म हुआ था। आज ही के दिन गांधीजी की सहधर्मिनी कस्तूरबा गांधी का जन्‍म हुआ था। आज ही महात्‍मा ज्योतिबा फुले और राहुल सांकृत्‍यायन की भी जयंती है। उन्होंने कहा कि महान कार्य करने वाली आत्‍माओं को ही महात्‍मा की संज्ञा से विभूषित किया जाता है। महात्मा फुले ने शिक्षा के लिए अद्वितीय कार्य किए हैं। राष्ट्र निर्माण की दृष्टि से उनके कार्य आज भी हमारे लिए पथ-प्रदर्शक हैं। स्‍त्री शिक्षा के लिए किए गए उनके कार्यों व संघर्षों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। आगे उन्होंने कहा कि महाराष्‍ट्र की धरती हमेशा से विभूतियों की धरती रही है। कई महापुरूष या तो सीधे यहीं पैदा हुए हैं अथवा कई एक की यह कर्मभूमि रही है। महात्मा ज्‍योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले की यह जन्‍मभूमि और कर्मभूमि दोनों रही है। वहीं यह बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी एवं कस्तूरबा गांधी की यह कर्मभूमि रही है। उन्‍होंने छात्र-छात्राओं से कहा कि उन्‍हें महापुरूषों की जन्‍मभूमि व कर्मभूमि का दर्शन करने जाना चाहिए। ये स्‍थल आज भी हमें आज भी प्रेरित करते हैं। उन्‍होंने देशभर में महापुरूषों की जन्मभूमि और कर्मभूमि से जुड़े अपने अनुभवों को छात्र-छात्राओं से साझा किया। उन्‍होंने बताया कि हमारे महापुरूषों के जीवन में हमें कथनी और करनी के बीच गहरा तालमेल देखने को मिलता है। उन्होंने यह भी कहा कि महापुरूषों को किसी जाति-धर्म-संप्रदाय अथवा देश-काल की सीमाओं तक सीमित नहीं किया जा सकता है। उन्‍होंने सभी छात्र-छात्राओं से महात्‍मा फुले और कस्‍तुरबा गांधी सरीखे महापुरूषों से संबंधित साहित्‍य का अध्‍ययन करने और उससे प्रेरणा गृहन करने की बात कही। अंत में उन्होंने कहा कि हमें अपने इन महापुरूषों से मानवता और भ्रातृत्‍व का संदेश सीखना चाहिए।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. नृपेन्‍द्र प्रसाद मोदी ने कहा कि कस्‍तूरबा गांधी जी से उम्र में 6 माह के लगभग बड़ी थी और यह वर्ष बा-बापू की जयंती का 150 वां वर्ष भी है। उन्‍होंने बा-बापू से जुड़े हुए स्‍थलों के भ्रमण के अपने निजी अनुभवों की भी चर्चा की। उन्‍होंने महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले के ऐतिहासिक योगदानों की विस्तृत चर्चा की। अंग्रेजों की गुलामी के दौर में इन महापुरूषों के कार्यों की विस्‍तृत चर्चा करते हुए उन्‍होंने बा-बापू के दक्षिण अफ्रीका से लेकर भारत में किए गए सत्‍याग्रह की भी चर्चा की।

विभाग की छात्रा माधुरी श्रीवास्तव ने कस्तूरबा गांधी के ईव्न संघर्ष की विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि कस्‍तूरबा महान समाज सेविका थी। उन्‍होंने महात्‍मा गांधी का कदम-कदम पर साथ दिया था। कस्‍तूरबा का जीवन-संघर्ष हमें आज भी प्रेरित करता है। वहीं विभाग की छात्रा सुजाता थुल ने कहा कि महात्‍मा फुले ने न केलव दलितों-पिछड़ों के लिए ही काम किया था अपितु महिलाओं की शिक्षा में उनका अभूतपूर्व योगदान है। उसी प्रकार कस्‍तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी के साथ देश की आजादी की आंदोलन में महत्‍वपूर्ण योगदान था। एमफिल शोधार्थी राजन प्रकाश ने कहा कि थासम पेन की रचनाओं का महात्‍मा फुले एवं सावित्री फुले पर काफी प्रभाव था। विभाग के ही एमएसडब्ल्यू के छात्र रविचन्‍द्र ने कहा कि आज पूरे देश में महात्‍मा फूले की 191 वीं जयंती मनाई जा रही है। फुले ने ऐसे तबके के लिए शिक्षा का मार्ग खोला था जिन्‍हें उस वक्त तक शिक्षा के वंचित रखा गया था। किन्तु नव उदारवादी नीतियों की आड़ में आज शिक्षा के निजीकरण के नाम पर एक बार फिर आम लोगों के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद किए जा रहा है।

संगोष्ठी के अंत में धन्‍यवाद ज्ञापन विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. मिथिलेश कुमार ने तथा संचालन डॉ. मुकेश कुमार ने किया। उक्‍त अवसर पर विभाग के प्राध्‍यापक डॉ. शिवसिंह बघेल, गजानन निलामे, डॉ. पल्‍लवी शुक्‍ला आदि उपस्थित थे। संगोष्ठी में विभाग के दर्जनों पी-एच.डी, एम‍ फिल, एम.एस.डब्‍ल्‍यू. एवं बी.एस.डब्‍ल्‍यू की छात्र-छात्राएं शामिल हुए।    


रिपोर्टिंग टीम- डॉ मुकेश कुमार, नरेश गौतम, डिसेंट साहू    

Sunday, March 25, 2018

वर्धा : सात दिवसीय संकाय संवर्द्धन कार्यशाला का प्रतिकुलपति ने किया समापन



वर्धा, 25 मार्च 2018. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी सामाजिक कार्य अध्ययन केंद्र एवं राष्ट्रीय ग्रामीण संस्थान परिषदहैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित सात दिवसीय ग्रामीण सहभागिता में संकाय संवर्द्धन कार्यशाला के अंतिम दिन प्रथम सत्र में महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के मेडिसिन विभाग के निदेशक प्रो. उल्हास जाजू ने पिछले चार दशकों के अपने अनुभव के आधार पर सामुदायिक स्वास्थ्य को लेकर किए गए प्रयोग पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि हमारे काम की शुरुआत 40 साल पहले इस संदर्भ में शुरू किया था ताकि स्वास्थ्य सुविधाएं ग्रामीण लोगों तक पहुँच सके और इसी कड़ी में ग्रामीण स्वच्छता का मुद्दा हमारे सामने आया। इस कार्य को पूर्ण करने के लिए हमने गांधी, विनोबा तथा सुशीला नायर आदि के विचारों को अपनाया। जिससे हमने ग्रामीण भारत के साथ जुडने की कला सीखी। इसी कड़ी में हमने जयप्रकाश नारायण के विचारों को भी अपनाया।

उन्होंने आगे कहा कि समता, स्वतंत्रता तथा मैत्री के आधार पर ही अपने ध्येय को प्राप्त किया जा सकता है। इसके लिए सत्ता का विकेन्द्रीकरण आवश्यक शर्त बन जाती है। गांधी के अनुसार ग्रामीणों में सत्ता का विकेन्द्रीकरण ही सच्चा 'हिन्द स्वराज' लाएगा। इसी कड़ी में हमने गांधी-जीवन के आदर्शों को अपनाते हुए श्रम आधारित समाज रचना की स्वीकार्यता को अपनाया। प्रो. जाजू ने आगे कहा कि गांधी ने ग्राम स्वराज का सपना देखा जिसे विनोबा जी ने भूदान-ग्रामदान के जरिये आगे बढ़ाने की कोशिश की थी। विदर्भ के गढ़चिरौली जिले में मेंढ़ा-लेखा इसी तरह का प्रयोग है जो आज भी हमें देखने को मिलता है।
            उन्होंने कहा कि गांधी अंत्योदय से सर्वोदय अर्थात समन्वय की बात करते थे। हमने लाओत्से का निम्न मंत्र अपनाया-
            लोगों की ओर जाओ
            उनके साथ काम करो
            उन्हें समझो
            उनसे सीखें
            उन्हें प्रेम करें
            उनके साथ नियोजन करें
            उनके साथ कार्य करें!
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करते हुए हमने यह ध्यान रखा कि यह 'for the people' अर्थात जनता के लिए हो। हमें कुछ समस्याओं के साथ भी जूझना पड़ा। यहाँ के लोगों के लिए आज सबसे महंगा स्वास्थ्य खर्च माना जाता है। गांवों की संस्कृति, उनका जीवन अनुभव आदि को समझे बगैर तथाकथित पढ़े-लिखे लोग केवल विकास के नाम पर आउटसाइडर के रूप में काम करने की सोचते हैं। जिसमें उन्हें भीख से ज्यादा नहीं देते, ऐसे में हम इसे समुदाय सहभागिता कैसे कहें! यह एक गंभीर प्रश्न है। अक्सर हम गाँव वालों पर थोंपने की ही कोशिश करते हैं। आज एक ओर विज्ञान नये-नये लक्ष्यों की प्राप्ति की है लेकिन कहीं भी इसको अच्छे उपयोग के लिए नहीं अपनाया गया। इसे ज़्यादातर दुरुपयोग के लिए ही उपयोग में लाया जाता है। विनोबा को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि विज्ञान रथ के घोड़े की तरह है जिसकी लगाम अपने अच्छे लोगों के हाथ में होने की आवश्यकता है।
            उन्होंने कहा कि गांवों में हम ऐसा क्यों समझते हैं कि ग्रामीणों को हम अक्ल सिखाने जा रहे हैं? गांवों के लोगों के विज़डम को भी हमें समझना होगा। एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि गाँव में वट वृक्ष की पूजा करने वाली महिलाओं से यह पूछा गया कि आपने किसकी पूजा की तो उनका उत्तर था पति अर्थात शिव की। मेरे प्रश्न के जवाबी उत्तर में कि क्या किसी देवी की पूजा होती है तो उनका जवाब था 'साहब उनकी पूजा तो रोज ही होती है।' अर्थात 85% महिलाओं को आज भी पति के द्वारा पीटा जाता है, जिसे वे महिलाएं व्यंग्यपूर्वक पूजा कह रही थी।
            उन्होंने आगे कहा कि आम लोगों तक वास्तविक लाभ पहुँचाने के लिए हमें समाज की संरचना को बदलना होगा जिसके लिए राजनैतिक मंशा की आवश्यकता ज्यादा है। अपने प्रयोग पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि हमने गांवों में फ्री में कोई भी सेवा नहीं दी और वहाँ के लोगों की सहभागिता के आधार पर ज्वार, धान आदि को इकट्ठा कर उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं दी गई। इस गतिविधि के माध्यम से ग्रामीणों में 'राइट टू डिमांड' के प्रति जागरूकता को बढ़ाने की कोशिश की। उन्होंने ट्रस्टीशिप की भावना के विकास पर भी ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत में आज भी स्वास्थ्य पर कुल GDP का मात्र 1.4 फीसदी ही खर्च किया जाता है। जबकि यूएनडीपी के मुताबिक यह 5 से लेकर 10 फीसदी तक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रति व्यक्ति के आधार पर ग्राम सभा के जरिये संसाधनों का बंटवारा हो और ग्रामीण लोगों के हाथों में निर्णय प्रक्रिया हो तभी गांवों का समुचित विकास मुमकिन हो सकता है। साथ ही उन्होंने समुदाय सहभागिता के मूलतत्व बताएं जिसमें से कुछ इस प्रकार है-
            -समुदाय द्वारा स्वीकृति
            -समुदाय द्वारा सहयोग
            -समुदाय द्वारा पार्टनरशिप
            -समुदाय द्वारा सहभागिता
            उन्होंने इसका उदाहरण बताते हुए बताया कि क्रांति सातत्यपूर्ण होती है, नित-नवीनतम होती है। मेंढ़ा-लेखा जैसे गाँव में ग्राम सभा को भूस्वामित्व ग्रामसभा को सौंपने में 35 साल लगे। ऐसे गाँव में सही मायने में ग्रामीण सहभागिता के उक्त सभी मूल तत्वों को देखा जा सकता है। आगे उन्होंने कहा कि हमने गांवों में स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करने हेतु जिस तरीके को अपनाया वह यह थी- शुरुआत में हमने घर-घर जाकर ग्राम वासियों को स्वच्छता के बारे में बताना शुरू किया। इस कार्य में ग्रामीणों की सहभागिता के साथ-साथ कुछ संस्थाओं से मदद ली गई। खुले में शौच जाने को खत्म करने हेतु अलग-अलग मोहल्ले में एक-एक टाइलेट बनाया गया लेकिन इसका उपयोग देखा कि लोग लकड़ी, बकरी आदि को रखने के लिए किया जाने लगा। जब हमने वहाँ की वृद्ध महिलाओं से बातचीत की कि ऐसा क्यों हुआ! तब उन्होंने बताया कि 'हर परिवार की महिलाओं को ही दूर-दूर के कुएं से पानी ढोकर लाना होता है। घर के सात लोगों के लिए नहाने, कपड़े धोने से लेकर पीने व रसोई के लिए पानी लेकर वे ही आती हैं। उसमें भी अब आपकी टाइलेट के लिए अलग से पानी लाकर मेरी बहू को मारना है क्या? तब जवाब में मैंने खिसियाहट के साथ कहा कि फिर सुबह-सुबह सलामी देने का शौक क्यों है? वृद्धा ने जवाब दिया कि गीली जमीन, बिजली की कमी तथा बिच्छू, साँप के डर से महिला-पुरुष रास्ते के दोनों अलग-अलग किनारे पर टायलेट के लिए जाते हैं। इस तरह हमने उनसे वहाँ से अक्ल प्राप्त की और विज्ञान का आधार लेते हुए उनकी आवश्यकताओं के अनुसार कम पानी खर्च होने वाला शौचालय बनाया गया। इसे बनाने एवं उपयोग में लाने में पाँच साल लगे। आगे इस परियोजना को गांवों में क्रियान्वित करने के लिए ग्रामीणों के द्वारा ही किये जाने की प्रविधि को अपनाया गया जिसका अंतिम उद्देश्य 'ग्राम स्वराज' था। उन्होंने कहा कि बिना लोकशक्ति के गाँव में कोई भी परिवर्तन नहीं लाया जा सकता है। शक्ति के आधार पर, नैतिकता के आधार पर हमने वहाँ कार्य किया, जाति-धर्म से अलग आर्थिक क्षमताओं के आधार पर सामाजिक संरचना का निर्माण करना। व्यक्ति तथा सामाजिक योगदान को बढ़ावा दिया। श्रमदान, समर्थ की पहचान की गयी इसी से सहभागितापूर्ण नेतृत्व का निर्माण हुआ।
            उन्होंने आगे कहा कि हमने अपने प्रयोगों में से जो पाया वह यह था कि ग्रामीण लोगों के अनुभवों के आधार पर ही उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य होना चाहिए। दान का स्वरूप भीख न हो बल्कि लोकशक्ति के रूप में उसका उभार होना चाहिए। दानकर्ता को ट्रस्टी के रूप में होना चाहिए न कि दाता के रूप में। संसाधन ग्राम सभाओं के हाथ में होने चाहिए। इस पूरे कार्य को करने के लिए तंत्र-मंत्र के साथ-साथ व्रत लेना जरूरी है। हम सब जब व्रती के रूप में सामाजिक जीवन का निर्वहन करेंगे तभी अच्छे समाज का निर्माण होगा। मेंढ़ा-लेखा इस मामले में काफी आगे निकाल चुका है। हम भी समाज का मंगल चाहते हैं तो इस तरह के प्रयोगों को आगे बढ़ाना होगा।

द्वितीय सत्र में ग्रुप प्रस्तुति हुई। अशोक सातपूते, राहुल निकम, गजानन नीलामे, डिसेन्ट कुमार द्वारा लेखा-मेंढ़ा के सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षिक स्थिति के अध्ययन के आधार पर अपना रिपोर्ट प्रस्तुत किया। रिपोर्ट में उन्होंने कहा कि वहाँ की शैक्षिक स्थिति बहुत ही निम्नतर है तथा गाँव में इसको लेकर एक प्राथमिक स्कूल के अलावा दूसरा कुछ संसाधन भी नहीं दिखाई दिया। निकम ने अपने अनुभव बताते हुए कहा कि उस गाँव में दोपहर के अनुचित समय में जाने के कारण ज्यादा जानकारी नहीं प्राप्त हो सकी, किन्तु ग्रामीणों की सहभागिता काबिल-ए-तारीफ़ है। गांवों में कई सारे गलत चीजों पर प्रतिबंध लगाया गया है। वहीं अशोक सातपूते ने मेंढ़ा लेखा के विवाह संस्था का विस्तृत विश्लेषण सबके सामने रखा। अंत में सभी ने सेवाग्राम गाँव की संरचना पर अपनी बात रखी। 
            समृद्धि डाबरे ने अपने ग्रुप का प्रतिनिधित्व करते हुए महिलाओं से संबन्धित समस्याओं पर बात रखी। डॉ. शिव सिंह बघेल ने मेंढ़ा लेखा पर विस्तृत प्रस्तुति दी। साथ ही सेवाग्राम गाँव की महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बात की। अंत में दोनों की तुलना के आधार पर गांवों के बेहतरी के लिए विकल्प प्रस्तुत किए।
            खेती-किसानी और शिक्षा के मसले पर गठित समूह ने मेंढ़ा-लेखा और सेगांव के शैक्षिक भ्रमण के हवाले से अपने अनुभव साझा किए। इस समूह में डॉ. मुकेश कुमार, डॉ. देवशीष मित्रा एवं डॉ. पार्थसारथी मालिक, नरेश गौतम शामिल थे। इस समूह की तरफ से डॉ. पार्थसारथी ने अपने अनुभव रखते हुए कहा कि पढ़े-लिखे लोग सैद्धान्तिक चर्चा मात्र करते हैं किन्तु गाँव के लोग उसको व्यवहार में उपयोग में लाते हैं। श्याम शर्मा ने भी मेंढ़ा लेखा के अपने अनुभव शेयर किए। उन्होंने गाँव के सांस्कृतिक पहलू को रेखांकित किया। टी. राजु ने भी अपने अनुभव बताए। मेंढ़ा लेखा गाँव में की जा रही बांस की खेती के बारे में भी उन्होंने चर्चा की।
            चर्चा के अंत में प्रो. उल्हास जाजू ने मेंढ़ा-लेखा गाँव के बनने की पूरी प्रक्रिया की संक्षिप्त चर्चा की। उन्होंने बताया कि वनों पर सामुदायिक अधिकार कानून बनाने के साथ-साथ इस गाँव ने सबसे पहले उसे हासिल भी किया। तत्कालीन केंद्रीय वन-पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने उस गाँव में आकार वनों पर सामुदायिक अधिकार की घोषणा की थी। उन्होंने बताया कि तीन वर्ष पूर्व इस गाँव ने अपनी भूमि ग्राम सभा को दान कर दिया है। अब वहाँ भूमि की मिल्कियत पर व्यक्तिगत मालिकी नहीं है। ग्राम सभा ने हर किसी को उस भूमि पर कृषि करने हेतु दे रखी है। श्रमजीवी समाज के लिए इस गाँव ने एक नया आदर्श खड़ा किया।

इस सात दिवसीय कार्यशाला के समापन-सत्र की अध्यक्षता महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. आनंद वर्धन शर्मा ने की। संचालन डॉ. मिथिलेश कुमार ने किया। उक्त मौके पर प्रो. उल्हास जाजू, विश्वविद्यालय के कुलसचिव कादर नवाज खान, डॉ शंभू जोशी एवं एनसीआरआई के डॉ. डी. एन. दास मौजूद थे। एनसीआरआई के डॉ. डी. एन. दास को प्रतिकुलपति ने अंगवस्त्र, सूत की माला व चरखा भेंट कर सम्मानित किया। समापन सत्र में पूरे कार्यक्रम की संक्षिप्त रिपोर्ट डॉ. मुकेश कुमार ने प्रस्तुत किया। समापन सत्र में दो प्रतिभागियों टी. राजू एवं डॉ. राहुल निकम ने बारी-बारी से अपने अनुभव शेयर करते हुए बताया कि इस कार्यशाला से उन्हें काफी फायदा मिला और ग्रामीण समुदाय को सूक्ष्मता से जानने-समझने का मौका मिला। दोनों ने कहा कि इस किस्म का फ़ैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम एक सप्ताह मात्र न होकर पंद्रह दिनों का होना चाहिए। उक्त मौके पर एनसीआरआई के डॉ. डी. एन. दास ने अपना मत प्रकट करते हुए कहा कि महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय ने यह आयोजन कर महत्वपूर्ण कार्य किया है। उन्होंने प्रतिकुलपति और कुलसचिव से ग्रामीण समुदाय से लगाव बढ़ाने हेतु इसे पाठ्यक्रम का अंग बनाने में सहयोग का अनुरोध किया। समापन सत्र में ही प्रतिकुलपति एवं कुलसचिव के हाथों सभी प्रतिभागियों के बीच प्रमाण-पत्र वितरित किया गया।

समापन सत्र में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. आनंद वर्धन शर्मा ने कहा कि ग्रामीण समुदाय पर केन्द्रित महत्वपूर्ण कार्यशाला सफलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए आप सभी बधाई के पात्र हैं। उन्होंने कहा कि भारत के गाँव तमाम अभावों के बावजूद विशिष्टता लिए हुए हैं। गाँव में आतिथ्य भाव आज भी कायम है। गाँव से आज भी बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। गांव में आज सुविधाओं का अभाव है, लोग बड़े पैमाने पर गाँव से विस्थापित हो रहे हैं। उन्होंने महाराष्ट्र के चर्चित मॉडल गाँव हिबरे बाजार के प्रयोग की भी चर्चा की। प्रतिकुलपति ने एनसीआरआई से महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय में एक स्थायी केंद्र बनाने का भी निवेदन किया, जहां वर्ष भर इस प्रकार के ग्राम केन्द्रित कार्यक्रम संचालित किए जा सकें। समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों को कुलसचिव कादर नवाज खान ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

रिपोर्टिंग टीम : डॉ. मुकेश कुमार, नरेश गौतम, गजानन एस. निलामे एवं डिसेन्ट कुमार साहू.