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Saturday, April 28, 2018

तीन दिवसीय बा-बापू 150वीं जयंती तैयारी बैठक का दूसरा दिन

वर्धा 27 अप्रैल. पीसफुल सोसाइटी, गोवा के किशन के द्वारा मुरारी शरण द्वारा रचित ‘नदियाँ धीरे बहो’ गीत गायन से दूसरे दिन के सत्र का प्रारंभ हुआ. सत्र के प्रारंभ में डॉ. मुकेश कुमार ने 26 अप्रैल की पूरी चर्चा का संक्षिप्त सार पेश किया. उसके उपरांत कलानंद मणि ने गाँधी के रचनात्मक कार्यक्रमों के आलोक में सात मुद्दों पर समूह चर्चा हेतु सात समूह प्रस्तावित किया.
सामाजिक
आर्थिक
शैक्षणिक
आरोग्य
एकादश व्रत
गाँधी के विचारों-मूल्यों-प्रयोगों पर शोध
गाँधी के विरुद्ध होने वाली बातों का सार्थक उत्तर स्वरूप गतिविधियाँ
कौमी एकता,
अस्पृश्यता निवारण,
महिलाएं,
आदिवासी
आर्थिक समानता,
खादी,
ग्रामोद्योग,
किसान,
मजदूर

बुनियादी तालीम,
राष्ट्रभाषा,
मातृभाषा,
प्रांतीय भाषा,
वयस्क शिक्षा

आरोग्य की शिक्षा,
नशाबंदी,
ग्रामीण स्वच्छता,
कुष्ट रोग निवारण,
एड्स निवारण 
सत्य,
अहिंसा,
अस्तेय,
ब्रह्मचर्य,
अपरिग्रह,
स्वदेशी,
अभय,
सर्वधर्म समभाव, अस्पृश्यता निवारण, शरीर श्रम, अस्वाद



·      ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा मिलना चाहिए. आज सारी चीजें बड़े उद्योगों में पैदा हो रही हैं. जबकि आम लोगों की ज़रूरतों के ज्यादातर सामान गाँव में बनाया जा सकता है.·      खादी एक वस्त्र ही नहीं विचार भी है. यह विकेन्द्रित उद्योग में बनता है. हर गाँव में खादी बनने का कार्य हो, इसका डिजाईन तैयार हो. सरकारी संस्थानों में इसके उपयोग को बढ़ावा मिले. खादी के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था हो.आर्थिक मुद्दे पर समूह चर्चा की रिपोर्ट :
·      आज बीज, खाद व कीटनाशक आदि पर बाज़ार का नियंत्रण हो चुका है. किसानों के पास से यह सब छिन गया है. किसानों को अनाज उत्पादन का वाजिब मूल्य नहीं मिल पा रहा है. किसानों के हितों को संरक्षण मिलना चाहिए.
·      मजदूर का शोषण न हो.
·      आर्थिक असमानता दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि संपत्ति रखने की सीमा निर्धारित होनी चाहिए.
               
सामाजिक मुद्दे पर समूह चर्चा की रिपोर्ट :
·      देश विभिन्न जाति, धर्म, सम्प्रदाय में सदियों से बंटा रहा है. आज साम्प्रदायिकता बढ़ती जा रही है इसके राजनीतिक कारण हैं.
·      धर्म, जाति के चुनावी इस्तेमाल पर रोक लगानी चाहिए.
·      भारतीय संविधान में दी गयी धार्मिक स्वतंत्रता के दुरुपयोग पर रोक लगे.
·      भारतीय संविधान की पुस्तक को घर-घर तक पहुँचाना होगा तभी अधिकारों और कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता आएगी.
·      अस्पृश्यता कोई वैज्ञानिक-तार्किक आधार नहीं है, यह एक किस्म की अंधश्रद्धा है. यह सामाजिक असमानता को बढ़ावा देती है. इसको खत्म करने के लिए कानून बने और इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए.
·      अंतरजातीय विवाह आदि को बढ़ावा देना चाहिए.
·      आदिवासियों की भाषा को संरक्षण दिया जाये. उनके बच्चों को स्कूली शिक्षा उन्हीं की मातृभाषा में दी जानी चाहिए. आदिवासियों का वनों पर अधिकार सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
·      महिलाओं के बराबरी के अधिकार को लागू किया जाए. घर के बाहर या अंदर दोनों ही जगहों पर महिलाओं को समान अधिकार मिलना चाहिए.

शिक्षा के मुद्दे पर समूह चर्चा की रिपोर्ट :

·      बुनियादी शिक्षा / तालीम को फिर से शुरू किया जाना चाहिए :
शिक्षक शिक्षण में गाँधी दर्शन का दृष्टिकोण और उसके आधार पर मोड्यूल के निर्माण में अध्यापकों की भूमिका होनी चाहिए. शिक्षकों का गाँधी साहित्य के साथ परिचय कराया जाना चाहिए. नई तालीम की अनुसंधानपरक प्रस्तुति. शैक्षिक वातावरण में असहमति के लिए जगह होनी चाहिए. गांधीजी की नई तालीम से असहमति नहीं है किंतु नई तालीम में समयानुरूप बदलाव भी जरुरी है. सेवापूर्व शिक्षकों को नई तालीम से परिचय कराया जाए. निशुल्क शिक्षा की गारंटी हो. मातृभाषा में शिक्षा मिले. उत्पादकता से छात्र जुड़ें. प्रत्येक विश्वविद्यालय ने केंद्र सरकार के निर्देशानुसार पाँच गावों को गोद लिया है. उन गावों में स्थित सरकारी प्राथमिक विद्यालय एवं माध्यमिक विद्यालयों में विश्वविद्यालय को जोड़ा जाए.

·      वयस्क शिक्षा :
वयस्क शिक्षा के लिए पूर्व में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा योजना लायी गयी थी उस योजना को पूर्ववत लागू करने का प्रस्ताव है ताकि विश्वविद्यालय और महाविद्यालय अपने-अपने क्षेत्रों में वयस्क एवं सतत शिक्षा के लिए नीति आधारित कार्य कर सकें.

·      प्रांतीय भाषा :
प्रांतीय भाषाओं में उपलब्ध गांधीवादी साहित्य और देशज ज्ञान पर आधारित साहित्य का अनुवाद हिंदी में उपलब्ध कराया जाए और हिंदी, अंग्रेजी तथा अन्य प्रादेशिक भाषाओं के साहित्य का अंतर अनुवाद भी किया जाए. इसके लिए कार्यशालाओं, परिचर्चा, वाद-विवाद, निबंध एवं अन्य समावेशी कार्यक्रमों का आयोजन ग्रामीण एवं शहरी स्तरों पर किया जाए जिसमें राज्य एवं केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को जिम्मेदारी दी जाए. बा-बापू पर आधारित साहित्य का रेडियो, नाटक, डोक्युमेंट्री एवं फिल्म निर्माण एवं प्रदर्शन के लिए कार्यक्रम बनाया जाए. प्रांतीय भाषाओं में जो भी आदिवासी भाषाओं में प्राप्त ज्ञान के संरक्षण के लिए उन भाषाओं का जतन किया जाए.

राष्ट्रीय भाषा :

राष्ट्रीय भाषा के साथ प्रांतीय भाषा की टकराहट का समाधान किया जाना चाहिए. भाषाई अस्मिता और टकराहट को सांस्कृतिक गतिविधियों द्वारा समझने और समझाने की कार्य योजना बनाई जाए. समस्त राज्यों के बीच मानव संसाधन एवं विकास विभाग-एमएचआरडी ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ कार्यक्रम की योजना प्रारंभ की है, उसमें गाँधी विचार का अंतर्भाव किया जाए अथवा ‘बा-बापू’ यात्रा कश्मीर से कन्याकुमारी तक के विविध राज्यों के विद्यार्थियों के नेतृत्व में निकाली जाए.
·      कलानंद मणी ने सुझाव दिया कि 30 जनवरी 2019 से भारत के कोने-कोने से एक यात्रा निकले जो 2 अक्टूबर 2019 को एक स्थान पर एकत्रित हो.

इस समूह में डॉ.शाहिद अली, डॉ.ऋषभ कुमार मिश्र, डॉ.धर्मेन्द्र शंभरकर, डॉ.राजेश लेहकपुरे, डॉ.अनुपमा कुमारी, रेहाना तबस्सुम, रफीक अली एवं संदीप मधुकर सपकाले शामिल थे.

समूह चर्चा के बीच सुरेश शर्मा द्वारा निर्देशित डाक्यूमेंट्री प्रदर्शित की गई. इसमें महात्मा गांधी के दांडी मार्च से लेकर सेवाग्राम आश्रम के बारे में संक्षेप में दिखाया गया है.

स्वास्थ्य समूह चर्चा :

क्या हम पारंपरिक स्वास्थ्य पद्धति के प्रयोगों के बारे में अध्ययन कर सकते हैं?
एकादश व्रत समूह चर्चा की रिपोर्ट :

·      विश्व अहिंसा के 10 वर्षों के कार्यक्रमों का दस्तावेजीकरण हो, जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों द्वारा किया गया हो.
·      वैयक्तिक हिंसा से वैश्विक हिंसा के माहौल को अहिंसा के माध्यम से शमन हेतु संकल्पित समाज बनाया जाना चाहिए.
·      ऐसे प्रभावी माध्यमों का उपयोग करते हुए सत्य के प्रयोग के प्रति माहौल तैयार किया जाना चाहिए.
·      एकादश व्रत के लोक व्यापीकरण हेतु सक्षम समूहों को तैयार करते हुए समाज में शिक्षण प्रबोधन की श्रृंखला चलाई जाए.
·      एकादश व्रत को सार्वजानिक कार्यक्रमों के पूर्व प्रस्तुत किया जाए.
·      प्रार्थना का भाव हमारे व्यक्तिगत एवं सार्वजानिक जीवन में अंगीकृत एवं उसका प्रकटीकरण हो.
·      संविधान की अनुसूची-8 में वर्णित सभी भाषाओं में मंगल प्रभात का अनुवाद हो.
·      एकादश व्रत को केवल उपदेशात्मक न होकर व्यावहारिक रूप में क्रियान्वित किया जाए.
गांधी को लेकर भ्रांतियां पर समूह चर्चा की रिपोर्ट :

विरोध:
·      भारत विभाजन का जिम्मेदार.
·      मुसलमानों के प्रति अधिक उदार होना.
·      दलित विरोधी थे.
·      पुणे एक्ट के सम्बन्ध में.
·      नेहरु के प्रति मोह और पटेल के प्रति द्वेष.
·      गैर वैज्ञानिक विचारधारा.
·      गांधीजी के ब्रह्मचर्य पर सवाल.
·      पूंजीपतियों के पक्षधर.
·      भगत सिंह को नहीं बचाया

जवाब :
·      ब्रिटिश सरकार हिन्दू मुस्लिम एकता को तोड़ना चाहती थी.
भारत के विभाजन में हिन्दू संगठन एवं मुस्लिम लीग या संगठन की अहम् भूमिका थी. गांधी ने जाति व धार्मिक संघर्षों को रोकने में भूमिका अदा की.
·      उदारता दुर्गुण नहीं, बल्कि सदगुण है. मुसलामानों के प्रति ही उदार नहीं वरन सभी दलित एवं पिछड़ों के प्रति सद्भाव होना चाहिए.
·      गांधी ने वर्ण व्यवस्था को समाप्त करने हेतु विशेष कार्य किया.
·      सवाल करने वालों से सवाल किया जाए उन्होंने समाज व देश के लिए क्या किया? आलोचना करना बहुत आसान है.


शोध में गांधी समूह चर्चा की रिपोर्ट :

सिनेमा में गांधी का अभिग्रहण
गांधी पर फिल्म/डाक्यूमेंट्री बने
शोध उपकरण के रूप में सिनेमा का प्रयोग किया जाए.
Gandhi in popular culture.
संकेत के रूप में गांधी
गांधी वांगमय की भूमिका का संकलन/संपादन
गांधी की आलोचनाओं की समीक्षा.
गांधी के समकालीन लोगों के कृतित्व को सामने लाना.
गांधी-लोहिया : प्रो. मनोज कुमार
गांधी-भगत सिंह : डॉ. अमित राय
गांधी अंबेडकर : डॉ. अमित विश्वास  
पूना पैक्ट : शैलेश
जे.पी. : सुरेश शर्मा
टैगोर : अमरेन्द्र कु. शर्मा
नेहरु : शम्भू जोशी
मीरा : सुप्रिया
सुभाष : चित्रा

कस्तूरबा की समकालीन महिलाओं का इतिहास लेखन
सुशीला नैय्यर : सुप्रिया

·      युवाओं के लिए प्रेरक प्रसंग
·      2 क्रेडिट का पाठ्यक्रम ugc द्वारा गांधी पर सुनिश्चित किया जाए
·      देश के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का सम्मलेन
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विश्वविद्यालय काशी,गुजरात –एक कार्यक्रम –एक बैठक- GSDS
·      गांधी वादी संस्थाओं पर शोध का कार्य हो.
·      MGCU गांधी कार्यक्रम प्रारम्भ करे.
·        गांधी को नाटक में, साहित्य में , डाक्यूमेंट्री आदि के साथ अनिवार्य रूप से लाना चाहिए
·      culture of peace व सत्याग्रह 2018-2019 को घोषित किया जाए
·      गांधी के शैक्षणिक प्रयोगों पर शोध हो.
·      हिंसा व प्रतिरोध के बदलते स्वरूप में गांधी
·      गांधी दर्शन में पुनर्चर्चा व उन्मुखीकरण
·      विदेशों में गांधी कार्य हेतु धनराशि एवं सहयोग
·      विदेशों में गांधी कार्य


कलानन्द मणि ने सूचित किया कि पूना में किसानों का संगठन बना है जिसकी पहुँच सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचा रहा है.
बसंत भाई ने नयी दिल्ली में 1व 2 मई को प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति से बापू की 150 वीं जयंती होने जा रही वार्ता का ज़िक्र किया. 


Sunday, March 25, 2018

वर्धा : संकाय संवर्द्धन कार्यशाला के छठे दिन प्रतिभागियों के अलग-अलग समूहों के बीच हुई चर्चा


वर्धा, 24 मार्च 2018. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी सामाजिक कार्यअध्ययन केंद्र एवं राष्ट्रीय ग्रामीण संस्थान परिषद, हैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में सात दिवसीय ग्रामीण सहभागिता में संकाय संवर्द्धन कार्यशाला के छठे दिन सेवाग्राम स्थित गांधी आश्रम का अवलोकन करते हुए सेगांव ग्राम का शैक्षणिक भ्रमण किया गया।
शनिवार को भोजनोपरांत सत्र का प्रारंभ हुआ। सत्र के प्रारंभ में डॉ. मिथिलेश कुमार ने शेष कार्यक्रम की संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की। उसके उपरांत एनसीआरआई के डी. एन. दास ने चर्चा के लिए बाकी बचे दो समूहों को आमंत्रित किया। समूह चर्चा टीम ने खेती, किसानी और शिक्षा पर चर्चा की। चर्चा की शुरुआत डॉ. मुकेश कुमार ने की। चर्चा में डॉ. देवाशीष मित्रा ने ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था के इतिहास की संक्षिप्त चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारत में कृषि अत्यंत ही विविधतापूर्ण इसलिए भारत में कृषि का कोई एकसमान पाठ्यक्रम नहीं बन सकता है। सभी राज्यों की भौगोलिक स्थिति में भी काफी भिन्नता है।

वहीं इस समूह के सदस्य डॉ. पार्थसारथी मल्लिक ने समूह चर्चा में कहा कि ग्रामीण समुदाय की बहुसंख्या कृषि पर निर्भर है। ग्रामीण क्षेत्र में कृषि की स्थिति बदहाल बनी हुई है। आज की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित नहीं रह गई है। लोग गाँव से पलायन कर रहे हैं। गाँव के लोगों को आज बिजली चाहिए, शिक्षा चाहिए, स्वास्थ्य चाहिए। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के चर्चित मेंढ़ा लेखा मॉडेल विलेज की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सबकुछ के बावजूद उस गाँव में शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी और वहाँ शिक्षा को लेकर जागरूकता का अभाव था। सरकारी शिक्षा व्यवस्था अत्यंत ही बदहाल है। निजी शिक्षा संस्थानों में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए संसाधन नहीं है। हर गाँव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए। गाँव केन्द्रित पाठ्यक्रम विकसित करने की जरूरत है।

डॉ. देवाशीष मित्रा ने चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि शिक्षा की आदर्शवादी परिकल्पना को सरजमीं पर उतार पाना काफी मुश्किल है। डॉ. पार्थसारथी मल्लिक ने गांधी के बुनियादी तालीम की भी चर्चा की। डॉ. मुकेश कुमार ने गांधी के बुनियादी तालीम के हृदय, हाथ और मस्तिस्क के संतुलित विकास के सिद्धान्त और व्यवहार पर प्रकाश डाला। शोधार्थी नरेश गौतम ने कहा कि आज 'वन इंडिया वन प्लान' की कोशिश की जा रही है। जबकि भारत के अलग-अलग राज्यों में भूमि का वितरण अत्यंत ही असमान है, मुट्ठीभर हाथों में आज भी भूमि का ज़्यादातर हिस्सा है जबकि ज़्यादातर लोग खेत-मज़दूर हैं।
समूह ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि कृषि केन्द्रित पाठ्यक्रम बनना चाहिए। समूह ने यह बात स्पष्टता के साथ कहा कि पूरे भारत के लिए कृषि पर केन्द्रित कोई एक पाठ्यक्रम नहीं हो सकता, कृषि की विभिन्नता, भौगोलिक भिन्नता आदि का ख्याल रखते हुए ही कृषि का कोई पाठ्यक्रम विकसित व निर्धारित किया जाना चाहिए। समूह चर्चा टीम की प्रस्तुति के उपरांत उपस्थित प्रतिभागियों ने अपने-अपने सुझाव दिए। चर्चा के अंत में एनसीआरआई के डी.एन. दास ने भी अपनी बातें रखी।


महाराष्ट्र के वर्धा जिले के देवली ब्लाक के लोनी गाँव में किए जा रहे प्रयोग को सीएम फ़ेलो अतुल ए. राऊत ने प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि ग्राम परिवर्तन अभियान के तहत महाराष्ट्र सरकार राज्य के एक हजार गांवों की शिनाख्त कर उसे विकसित करने का कार्यक्रम चला रही है। फिलहाल 450 गाँव में काम करने हेतु 350 सीएम फ़ेलो बहाल किए गए हैं। 9 बड़े कॉरपोरेट घरानों के कॉरपोरेट सोशल रेस्पोन्सिबिलिटी के तहत इस कार्य को आर्थिक सहयोग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने हमें योजना बनाने और उसे लागू करने की एक साथ ज़िम्मेदारी दी है। गाँव के सामुदायिक स्वास्थ्य को लेकर चलाई जा रही योजना की उन्होंने विस्तृत चर्चा की। गाँव में आसपास के सहयोग से पुस्तकालय की व्यवस्था करने, कृषि के विकास आदि क्षेत्रों में किए जा रहे कार्यों पर भी उन्होंने विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला।
एनसीआरआई के डी.एन. दास ने ग्रामीण समुदाय के साथ सहभागिता बढ़ाने हेतु पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने हेतु महत्वपूर्ण सुझाव पेश किए। उन्होंने विश्वविद्यालय के छात्रों-शिक्षकों को गाँव से जुडने, उनके बीच कार्य करने हेतु कदम बढ़ाने पर ज़ोर दिया। गाँव के लोगों से जुड़ते हुए सरकार द्वारा चलाई जा रही विकास योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू करने में शिक्षकों-विद्यार्थियों की भूमिका भी उन्होंने रेखांकित किया।

सत्र का अंत सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिका के लिए गठित समूह ने नाट्य प्रस्तुति के जरिये सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवियों व छात्र-छात्राओं की भूमिका कॉ बेहतरीन ढंग से रेखांकित किया। इस समूह ने एक निरक्षर व्यक्ति को रोज़मर्रा की जिंदगी में आने वाली कठिनाइयों का चित्रण करते हुए शिक्षा की महत्ता को संवेदनशील ढंग से सामने लाने का प्रयास किया। शिक्षा के प्रति जागरूकता लाने में सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों व छात्र-छात्राओं की भूमिका को भी भली भांति चित्रित किया। समूह ने शिक्षा के सशक्त माध्यम के बतौर नाट्य प्रस्तुति की महत्ता पर भी प्रकाश डाला। इस समूह में टी. राजू, डॉ. विजय कुमार वाघमारे, डॉ. भरत खंडागढ़े एवं श्याम शर्मा शामिल थे। अंत में एनसीआरआई के डी.एन. दास ने इसपर अपने विचार व्यक्त किए। गजानन एस. निलामे द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ सत्र की समाप्ति हुई। 
 
रिपोर्टिंग टीम : डॉ. मुकेश कुमार, नरेश गौतम, गजानन एस. निलामे, डिसेन्ट कुमार साहू

Thursday, May 18, 2017

मनुष्यता से जुड़ा हुआ है पर्यावरण का मुद्दा: प्रो. मनोज कुमार


तथाकथित विकास से उत्पन्न समस्याओं ने आज पूरे विश्व को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि विकास की इस राह पर ज्यादा दिनों तक चला नहीं जा सकता है। वैसे तो यह सोचते-सोचते 50 वर्ष से भी अधिक का समय गुजर चुका है क्योंकि इसकी शुरुवात 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के स्टाकहोम सम्मेलन से होती है, जहां विकास से उपजे पर्यावरणीय प्रदूषण और संसाधनों के खत्म होने की चिंता को लेकर सौ से अधिक देशइकट्ठा हुए। विकास की इन समस्याओं को देखते हुए 'बुंटलैंड आयोग' ने 'स्थायी विकास' का नारा दिया। तब से लेकर अब तक विभिन्न मंचों से सतत या स्थायी विकास का नारा बुलंद किया जाता रहा है। इस वर्ष के विश्व समाज कार्य दिवस का उद्देश्य भी पर्यावरण और इंसानी अस्तित्व की निरंतरता (Sustainability) को बढ़ावा देना रहा। इसी क्रम में 21 मार्च को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी समाज कार्य अध्ययन केंद्र के द्वारा विश्व समाजकार्य दिवस, 2017 पर एक परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। परिचर्चा इस वर्ष का विषय ग्लोबल एजेंडे का तीसरा स्तम्भ 'सामुदायिक और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देना' रहा।
केन्द्र के निदेशक प्रो. मनोज कुमार ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि पर्यावरणीय मुद्दे पर दुनिया की तमाम सरकारें एक तरह से सोच रही हैं और जनता दूसरे तरीके से सोच रही है। जब तक हम अपनी आवश्यकताओं को सीमित नहीं करेंगे तब तक पर्यावरण की सुरक्षा नहीं होगी। आगे उन्होने कहा कि पर्यावरण का मुद्दा मनुष्यता से जुड़ा हुआ है। इस परिचर्चा को आगे बढ़ते हुए सहायक प्रोफेसर श्री आमोद गुर्जर ने कहा कि सतत विकास की अवधारणा व्यक्ति केन्द्रित है जबकि इसे समग्र उपागम (holisticapproach) को अपनाना होगा। हमने मानव अस्तित्व पर संकट आने के बाद ही 'सतत विकास' की अवधारणा अपनाई।डॉ. शिव सिंह बघेल ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए यह कहा कि विद्यार्थियों को अपना लक्ष्य ऐसा बनाना चाहिए ताकि वे स्वयं को वैश्विक एजेंडे से जोड़ सके और ग्राम स्तर तक पहुंचाए।
डॉ. मिथिलेश ने कहा कि वैश्विक स्तर तथा भारत में भी संसाधनों के बड़े भाग पर चंद लोगों का आधिपत्य है जबकि एक बड़ा भाग अपना जीवन गरीबी और अभाव में व्यतीत कर रहा है इसलिए हमें संसाधनों के न्याय पूर्ण वितरण पर ध्यान देना होगा। परिचर्चा के दौरान उपस्थित सभी सहभागियों नेइस मुद्दे पर अपनी बात रखी। ज़्यादातर विद्यार्थियों ने अपने आस-पास विकास के नाम पर उत्पन्न हो रहे विसंगतियों को प्रमुखता के साथ रखा।
कार्यक्रम का संचालन नरेन्द्र कुमार दिवाकर ने किया। प्रास्ताविक डिसेन्ट कुमार साहू ने रखा और आभार गजानन निलामे ने किया। इस परिचर्चा में केंद्र के निदेशक प्रो.मनोज कुमार,डॉ. मिथिलेश कुमार, डॉ. शिव सिंह बघेल, सहायक प्रोफेसर श्री आमोद गुर्जर तथा केंद्र केनरेश गौतम, श्याम सिंह, आशुतोष, छविनाथ यादव,विलास चुनारकर, अनुराग पाण्डेय, शीना नेगी, सुधीर कुमार,अदिति, आनीता और शुभांगी सहित बड़ी संख्या में समाज कार्य के शोधार्थी/विद्यार्थी और एन जी ओ प्रबंधन के विद्यार्थी उपस्थित रहे।
नरेंद्र कुमार दिवाकर
शोधार्थी समाजकार्य