Thursday, May 18, 2017

मनुष्यता से जुड़ा हुआ है पर्यावरण का मुद्दा: प्रो. मनोज कुमार


तथाकथित विकास से उत्पन्न समस्याओं ने आज पूरे विश्व को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि विकास की इस राह पर ज्यादा दिनों तक चला नहीं जा सकता है। वैसे तो यह सोचते-सोचते 50 वर्ष से भी अधिक का समय गुजर चुका है क्योंकि इसकी शुरुवात 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के स्टाकहोम सम्मेलन से होती है, जहां विकास से उपजे पर्यावरणीय प्रदूषण और संसाधनों के खत्म होने की चिंता को लेकर सौ से अधिक देशइकट्ठा हुए। विकास की इन समस्याओं को देखते हुए 'बुंटलैंड आयोग' ने 'स्थायी विकास' का नारा दिया। तब से लेकर अब तक विभिन्न मंचों से सतत या स्थायी विकास का नारा बुलंद किया जाता रहा है। इस वर्ष के विश्व समाज कार्य दिवस का उद्देश्य भी पर्यावरण और इंसानी अस्तित्व की निरंतरता (Sustainability) को बढ़ावा देना रहा। इसी क्रम में 21 मार्च को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी समाज कार्य अध्ययन केंद्र के द्वारा विश्व समाजकार्य दिवस, 2017 पर एक परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। परिचर्चा इस वर्ष का विषय ग्लोबल एजेंडे का तीसरा स्तम्भ 'सामुदायिक और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देना' रहा।
केन्द्र के निदेशक प्रो. मनोज कुमार ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि पर्यावरणीय मुद्दे पर दुनिया की तमाम सरकारें एक तरह से सोच रही हैं और जनता दूसरे तरीके से सोच रही है। जब तक हम अपनी आवश्यकताओं को सीमित नहीं करेंगे तब तक पर्यावरण की सुरक्षा नहीं होगी। आगे उन्होने कहा कि पर्यावरण का मुद्दा मनुष्यता से जुड़ा हुआ है। इस परिचर्चा को आगे बढ़ते हुए सहायक प्रोफेसर श्री आमोद गुर्जर ने कहा कि सतत विकास की अवधारणा व्यक्ति केन्द्रित है जबकि इसे समग्र उपागम (holisticapproach) को अपनाना होगा। हमने मानव अस्तित्व पर संकट आने के बाद ही 'सतत विकास' की अवधारणा अपनाई।डॉ. शिव सिंह बघेल ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए यह कहा कि विद्यार्थियों को अपना लक्ष्य ऐसा बनाना चाहिए ताकि वे स्वयं को वैश्विक एजेंडे से जोड़ सके और ग्राम स्तर तक पहुंचाए।
डॉ. मिथिलेश ने कहा कि वैश्विक स्तर तथा भारत में भी संसाधनों के बड़े भाग पर चंद लोगों का आधिपत्य है जबकि एक बड़ा भाग अपना जीवन गरीबी और अभाव में व्यतीत कर रहा है इसलिए हमें संसाधनों के न्याय पूर्ण वितरण पर ध्यान देना होगा। परिचर्चा के दौरान उपस्थित सभी सहभागियों नेइस मुद्दे पर अपनी बात रखी। ज़्यादातर विद्यार्थियों ने अपने आस-पास विकास के नाम पर उत्पन्न हो रहे विसंगतियों को प्रमुखता के साथ रखा।
कार्यक्रम का संचालन नरेन्द्र कुमार दिवाकर ने किया। प्रास्ताविक डिसेन्ट कुमार साहू ने रखा और आभार गजानन निलामे ने किया। इस परिचर्चा में केंद्र के निदेशक प्रो.मनोज कुमार,डॉ. मिथिलेश कुमार, डॉ. शिव सिंह बघेल, सहायक प्रोफेसर श्री आमोद गुर्जर तथा केंद्र केनरेश गौतम, श्याम सिंह, आशुतोष, छविनाथ यादव,विलास चुनारकर, अनुराग पाण्डेय, शीना नेगी, सुधीर कुमार,अदिति, आनीता और शुभांगी सहित बड़ी संख्या में समाज कार्य के शोधार्थी/विद्यार्थी और एन जी ओ प्रबंधन के विद्यार्थी उपस्थित रहे।
नरेंद्र कुमार दिवाकर
शोधार्थी समाजकार्य

No comments:

Post a Comment