Sunday, March 25, 2018

वर्धा : संकाय संवर्द्धन कार्यशाला के छठे दिन प्रतिभागियों के अलग-अलग समूहों के बीच हुई चर्चा


वर्धा, 24 मार्च 2018. महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी सामाजिक कार्यअध्ययन केंद्र एवं राष्ट्रीय ग्रामीण संस्थान परिषद, हैदराबाद के संयुक्त तत्वावधान में सात दिवसीय ग्रामीण सहभागिता में संकाय संवर्द्धन कार्यशाला के छठे दिन सेवाग्राम स्थित गांधी आश्रम का अवलोकन करते हुए सेगांव ग्राम का शैक्षणिक भ्रमण किया गया।
शनिवार को भोजनोपरांत सत्र का प्रारंभ हुआ। सत्र के प्रारंभ में डॉ. मिथिलेश कुमार ने शेष कार्यक्रम की संक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तुत की। उसके उपरांत एनसीआरआई के डी. एन. दास ने चर्चा के लिए बाकी बचे दो समूहों को आमंत्रित किया। समूह चर्चा टीम ने खेती, किसानी और शिक्षा पर चर्चा की। चर्चा की शुरुआत डॉ. मुकेश कुमार ने की। चर्चा में डॉ. देवाशीष मित्रा ने ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था के इतिहास की संक्षिप्त चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारत में कृषि अत्यंत ही विविधतापूर्ण इसलिए भारत में कृषि का कोई एकसमान पाठ्यक्रम नहीं बन सकता है। सभी राज्यों की भौगोलिक स्थिति में भी काफी भिन्नता है।

वहीं इस समूह के सदस्य डॉ. पार्थसारथी मल्लिक ने समूह चर्चा में कहा कि ग्रामीण समुदाय की बहुसंख्या कृषि पर निर्भर है। ग्रामीण क्षेत्र में कृषि की स्थिति बदहाल बनी हुई है। आज की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित नहीं रह गई है। लोग गाँव से पलायन कर रहे हैं। गाँव के लोगों को आज बिजली चाहिए, शिक्षा चाहिए, स्वास्थ्य चाहिए। महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के चर्चित मेंढ़ा लेखा मॉडेल विलेज की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि सबकुछ के बावजूद उस गाँव में शिक्षा की व्यवस्था नहीं थी और वहाँ शिक्षा को लेकर जागरूकता का अभाव था। सरकारी शिक्षा व्यवस्था अत्यंत ही बदहाल है। निजी शिक्षा संस्थानों में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए संसाधन नहीं है। हर गाँव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए। गाँव केन्द्रित पाठ्यक्रम विकसित करने की जरूरत है।

डॉ. देवाशीष मित्रा ने चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि शिक्षा की आदर्शवादी परिकल्पना को सरजमीं पर उतार पाना काफी मुश्किल है। डॉ. पार्थसारथी मल्लिक ने गांधी के बुनियादी तालीम की भी चर्चा की। डॉ. मुकेश कुमार ने गांधी के बुनियादी तालीम के हृदय, हाथ और मस्तिस्क के संतुलित विकास के सिद्धान्त और व्यवहार पर प्रकाश डाला। शोधार्थी नरेश गौतम ने कहा कि आज 'वन इंडिया वन प्लान' की कोशिश की जा रही है। जबकि भारत के अलग-अलग राज्यों में भूमि का वितरण अत्यंत ही असमान है, मुट्ठीभर हाथों में आज भी भूमि का ज़्यादातर हिस्सा है जबकि ज़्यादातर लोग खेत-मज़दूर हैं।
समूह ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि कृषि केन्द्रित पाठ्यक्रम बनना चाहिए। समूह ने यह बात स्पष्टता के साथ कहा कि पूरे भारत के लिए कृषि पर केन्द्रित कोई एक पाठ्यक्रम नहीं हो सकता, कृषि की विभिन्नता, भौगोलिक भिन्नता आदि का ख्याल रखते हुए ही कृषि का कोई पाठ्यक्रम विकसित व निर्धारित किया जाना चाहिए। समूह चर्चा टीम की प्रस्तुति के उपरांत उपस्थित प्रतिभागियों ने अपने-अपने सुझाव दिए। चर्चा के अंत में एनसीआरआई के डी.एन. दास ने भी अपनी बातें रखी।


महाराष्ट्र के वर्धा जिले के देवली ब्लाक के लोनी गाँव में किए जा रहे प्रयोग को सीएम फ़ेलो अतुल ए. राऊत ने प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि ग्राम परिवर्तन अभियान के तहत महाराष्ट्र सरकार राज्य के एक हजार गांवों की शिनाख्त कर उसे विकसित करने का कार्यक्रम चला रही है। फिलहाल 450 गाँव में काम करने हेतु 350 सीएम फ़ेलो बहाल किए गए हैं। 9 बड़े कॉरपोरेट घरानों के कॉरपोरेट सोशल रेस्पोन्सिबिलिटी के तहत इस कार्य को आर्थिक सहयोग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने हमें योजना बनाने और उसे लागू करने की एक साथ ज़िम्मेदारी दी है। गाँव के सामुदायिक स्वास्थ्य को लेकर चलाई जा रही योजना की उन्होंने विस्तृत चर्चा की। गाँव में आसपास के सहयोग से पुस्तकालय की व्यवस्था करने, कृषि के विकास आदि क्षेत्रों में किए जा रहे कार्यों पर भी उन्होंने विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला।
एनसीआरआई के डी.एन. दास ने ग्रामीण समुदाय के साथ सहभागिता बढ़ाने हेतु पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने हेतु महत्वपूर्ण सुझाव पेश किए। उन्होंने विश्वविद्यालय के छात्रों-शिक्षकों को गाँव से जुडने, उनके बीच कार्य करने हेतु कदम बढ़ाने पर ज़ोर दिया। गाँव के लोगों से जुड़ते हुए सरकार द्वारा चलाई जा रही विकास योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू करने में शिक्षकों-विद्यार्थियों की भूमिका भी उन्होंने रेखांकित किया।

सत्र का अंत सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिका के लिए गठित समूह ने नाट्य प्रस्तुति के जरिये सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवियों व छात्र-छात्राओं की भूमिका कॉ बेहतरीन ढंग से रेखांकित किया। इस समूह ने एक निरक्षर व्यक्ति को रोज़मर्रा की जिंदगी में आने वाली कठिनाइयों का चित्रण करते हुए शिक्षा की महत्ता को संवेदनशील ढंग से सामने लाने का प्रयास किया। शिक्षा के प्रति जागरूकता लाने में सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों व छात्र-छात्राओं की भूमिका को भी भली भांति चित्रित किया। समूह ने शिक्षा के सशक्त माध्यम के बतौर नाट्य प्रस्तुति की महत्ता पर भी प्रकाश डाला। इस समूह में टी. राजू, डॉ. विजय कुमार वाघमारे, डॉ. भरत खंडागढ़े एवं श्याम शर्मा शामिल थे। अंत में एनसीआरआई के डी.एन. दास ने इसपर अपने विचार व्यक्त किए। गजानन एस. निलामे द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ सत्र की समाप्ति हुई। 
 
रिपोर्टिंग टीम : डॉ. मुकेश कुमार, नरेश गौतम, गजानन एस. निलामे, डिसेन्ट कुमार साहू

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