Saturday, April 28, 2018

तीन दिवसीय बा-बापू 150वीं जयंती तैयारी बैठक का दूसरा दिन

वर्धा 27 अप्रैल. पीसफुल सोसाइटी, गोवा के किशन के द्वारा मुरारी शरण द्वारा रचित ‘नदियाँ धीरे बहो’ गीत गायन से दूसरे दिन के सत्र का प्रारंभ हुआ. सत्र के प्रारंभ में डॉ. मुकेश कुमार ने 26 अप्रैल की पूरी चर्चा का संक्षिप्त सार पेश किया. उसके उपरांत कलानंद मणि ने गाँधी के रचनात्मक कार्यक्रमों के आलोक में सात मुद्दों पर समूह चर्चा हेतु सात समूह प्रस्तावित किया.
सामाजिक
आर्थिक
शैक्षणिक
आरोग्य
एकादश व्रत
गाँधी के विचारों-मूल्यों-प्रयोगों पर शोध
गाँधी के विरुद्ध होने वाली बातों का सार्थक उत्तर स्वरूप गतिविधियाँ
कौमी एकता,
अस्पृश्यता निवारण,
महिलाएं,
आदिवासी
आर्थिक समानता,
खादी,
ग्रामोद्योग,
किसान,
मजदूर

बुनियादी तालीम,
राष्ट्रभाषा,
मातृभाषा,
प्रांतीय भाषा,
वयस्क शिक्षा

आरोग्य की शिक्षा,
नशाबंदी,
ग्रामीण स्वच्छता,
कुष्ट रोग निवारण,
एड्स निवारण 
सत्य,
अहिंसा,
अस्तेय,
ब्रह्मचर्य,
अपरिग्रह,
स्वदेशी,
अभय,
सर्वधर्म समभाव, अस्पृश्यता निवारण, शरीर श्रम, अस्वाद



·      ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा मिलना चाहिए. आज सारी चीजें बड़े उद्योगों में पैदा हो रही हैं. जबकि आम लोगों की ज़रूरतों के ज्यादातर सामान गाँव में बनाया जा सकता है.·      खादी एक वस्त्र ही नहीं विचार भी है. यह विकेन्द्रित उद्योग में बनता है. हर गाँव में खादी बनने का कार्य हो, इसका डिजाईन तैयार हो. सरकारी संस्थानों में इसके उपयोग को बढ़ावा मिले. खादी के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था हो.आर्थिक मुद्दे पर समूह चर्चा की रिपोर्ट :
·      आज बीज, खाद व कीटनाशक आदि पर बाज़ार का नियंत्रण हो चुका है. किसानों के पास से यह सब छिन गया है. किसानों को अनाज उत्पादन का वाजिब मूल्य नहीं मिल पा रहा है. किसानों के हितों को संरक्षण मिलना चाहिए.
·      मजदूर का शोषण न हो.
·      आर्थिक असमानता दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि संपत्ति रखने की सीमा निर्धारित होनी चाहिए.
               
सामाजिक मुद्दे पर समूह चर्चा की रिपोर्ट :
·      देश विभिन्न जाति, धर्म, सम्प्रदाय में सदियों से बंटा रहा है. आज साम्प्रदायिकता बढ़ती जा रही है इसके राजनीतिक कारण हैं.
·      धर्म, जाति के चुनावी इस्तेमाल पर रोक लगानी चाहिए.
·      भारतीय संविधान में दी गयी धार्मिक स्वतंत्रता के दुरुपयोग पर रोक लगे.
·      भारतीय संविधान की पुस्तक को घर-घर तक पहुँचाना होगा तभी अधिकारों और कर्त्तव्यों के प्रति जागरूकता आएगी.
·      अस्पृश्यता कोई वैज्ञानिक-तार्किक आधार नहीं है, यह एक किस्म की अंधश्रद्धा है. यह सामाजिक असमानता को बढ़ावा देती है. इसको खत्म करने के लिए कानून बने और इसे सख्ती से लागू किया जाना चाहिए.
·      अंतरजातीय विवाह आदि को बढ़ावा देना चाहिए.
·      आदिवासियों की भाषा को संरक्षण दिया जाये. उनके बच्चों को स्कूली शिक्षा उन्हीं की मातृभाषा में दी जानी चाहिए. आदिवासियों का वनों पर अधिकार सुनिश्चित किया जाना चाहिए.
·      महिलाओं के बराबरी के अधिकार को लागू किया जाए. घर के बाहर या अंदर दोनों ही जगहों पर महिलाओं को समान अधिकार मिलना चाहिए.

शिक्षा के मुद्दे पर समूह चर्चा की रिपोर्ट :

·      बुनियादी शिक्षा / तालीम को फिर से शुरू किया जाना चाहिए :
शिक्षक शिक्षण में गाँधी दर्शन का दृष्टिकोण और उसके आधार पर मोड्यूल के निर्माण में अध्यापकों की भूमिका होनी चाहिए. शिक्षकों का गाँधी साहित्य के साथ परिचय कराया जाना चाहिए. नई तालीम की अनुसंधानपरक प्रस्तुति. शैक्षिक वातावरण में असहमति के लिए जगह होनी चाहिए. गांधीजी की नई तालीम से असहमति नहीं है किंतु नई तालीम में समयानुरूप बदलाव भी जरुरी है. सेवापूर्व शिक्षकों को नई तालीम से परिचय कराया जाए. निशुल्क शिक्षा की गारंटी हो. मातृभाषा में शिक्षा मिले. उत्पादकता से छात्र जुड़ें. प्रत्येक विश्वविद्यालय ने केंद्र सरकार के निर्देशानुसार पाँच गावों को गोद लिया है. उन गावों में स्थित सरकारी प्राथमिक विद्यालय एवं माध्यमिक विद्यालयों में विश्वविद्यालय को जोड़ा जाए.

·      वयस्क शिक्षा :
वयस्क शिक्षा के लिए पूर्व में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा योजना लायी गयी थी उस योजना को पूर्ववत लागू करने का प्रस्ताव है ताकि विश्वविद्यालय और महाविद्यालय अपने-अपने क्षेत्रों में वयस्क एवं सतत शिक्षा के लिए नीति आधारित कार्य कर सकें.

·      प्रांतीय भाषा :
प्रांतीय भाषाओं में उपलब्ध गांधीवादी साहित्य और देशज ज्ञान पर आधारित साहित्य का अनुवाद हिंदी में उपलब्ध कराया जाए और हिंदी, अंग्रेजी तथा अन्य प्रादेशिक भाषाओं के साहित्य का अंतर अनुवाद भी किया जाए. इसके लिए कार्यशालाओं, परिचर्चा, वाद-विवाद, निबंध एवं अन्य समावेशी कार्यक्रमों का आयोजन ग्रामीण एवं शहरी स्तरों पर किया जाए जिसमें राज्य एवं केन्द्रीय विश्वविद्यालयों को जिम्मेदारी दी जाए. बा-बापू पर आधारित साहित्य का रेडियो, नाटक, डोक्युमेंट्री एवं फिल्म निर्माण एवं प्रदर्शन के लिए कार्यक्रम बनाया जाए. प्रांतीय भाषाओं में जो भी आदिवासी भाषाओं में प्राप्त ज्ञान के संरक्षण के लिए उन भाषाओं का जतन किया जाए.

राष्ट्रीय भाषा :

राष्ट्रीय भाषा के साथ प्रांतीय भाषा की टकराहट का समाधान किया जाना चाहिए. भाषाई अस्मिता और टकराहट को सांस्कृतिक गतिविधियों द्वारा समझने और समझाने की कार्य योजना बनाई जाए. समस्त राज्यों के बीच मानव संसाधन एवं विकास विभाग-एमएचआरडी ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ कार्यक्रम की योजना प्रारंभ की है, उसमें गाँधी विचार का अंतर्भाव किया जाए अथवा ‘बा-बापू’ यात्रा कश्मीर से कन्याकुमारी तक के विविध राज्यों के विद्यार्थियों के नेतृत्व में निकाली जाए.
·      कलानंद मणी ने सुझाव दिया कि 30 जनवरी 2019 से भारत के कोने-कोने से एक यात्रा निकले जो 2 अक्टूबर 2019 को एक स्थान पर एकत्रित हो.

इस समूह में डॉ.शाहिद अली, डॉ.ऋषभ कुमार मिश्र, डॉ.धर्मेन्द्र शंभरकर, डॉ.राजेश लेहकपुरे, डॉ.अनुपमा कुमारी, रेहाना तबस्सुम, रफीक अली एवं संदीप मधुकर सपकाले शामिल थे.

समूह चर्चा के बीच सुरेश शर्मा द्वारा निर्देशित डाक्यूमेंट्री प्रदर्शित की गई. इसमें महात्मा गांधी के दांडी मार्च से लेकर सेवाग्राम आश्रम के बारे में संक्षेप में दिखाया गया है.

स्वास्थ्य समूह चर्चा :

क्या हम पारंपरिक स्वास्थ्य पद्धति के प्रयोगों के बारे में अध्ययन कर सकते हैं?
एकादश व्रत समूह चर्चा की रिपोर्ट :

·      विश्व अहिंसा के 10 वर्षों के कार्यक्रमों का दस्तावेजीकरण हो, जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों द्वारा किया गया हो.
·      वैयक्तिक हिंसा से वैश्विक हिंसा के माहौल को अहिंसा के माध्यम से शमन हेतु संकल्पित समाज बनाया जाना चाहिए.
·      ऐसे प्रभावी माध्यमों का उपयोग करते हुए सत्य के प्रयोग के प्रति माहौल तैयार किया जाना चाहिए.
·      एकादश व्रत के लोक व्यापीकरण हेतु सक्षम समूहों को तैयार करते हुए समाज में शिक्षण प्रबोधन की श्रृंखला चलाई जाए.
·      एकादश व्रत को सार्वजानिक कार्यक्रमों के पूर्व प्रस्तुत किया जाए.
·      प्रार्थना का भाव हमारे व्यक्तिगत एवं सार्वजानिक जीवन में अंगीकृत एवं उसका प्रकटीकरण हो.
·      संविधान की अनुसूची-8 में वर्णित सभी भाषाओं में मंगल प्रभात का अनुवाद हो.
·      एकादश व्रत को केवल उपदेशात्मक न होकर व्यावहारिक रूप में क्रियान्वित किया जाए.
गांधी को लेकर भ्रांतियां पर समूह चर्चा की रिपोर्ट :

विरोध:
·      भारत विभाजन का जिम्मेदार.
·      मुसलमानों के प्रति अधिक उदार होना.
·      दलित विरोधी थे.
·      पुणे एक्ट के सम्बन्ध में.
·      नेहरु के प्रति मोह और पटेल के प्रति द्वेष.
·      गैर वैज्ञानिक विचारधारा.
·      गांधीजी के ब्रह्मचर्य पर सवाल.
·      पूंजीपतियों के पक्षधर.
·      भगत सिंह को नहीं बचाया

जवाब :
·      ब्रिटिश सरकार हिन्दू मुस्लिम एकता को तोड़ना चाहती थी.
भारत के विभाजन में हिन्दू संगठन एवं मुस्लिम लीग या संगठन की अहम् भूमिका थी. गांधी ने जाति व धार्मिक संघर्षों को रोकने में भूमिका अदा की.
·      उदारता दुर्गुण नहीं, बल्कि सदगुण है. मुसलामानों के प्रति ही उदार नहीं वरन सभी दलित एवं पिछड़ों के प्रति सद्भाव होना चाहिए.
·      गांधी ने वर्ण व्यवस्था को समाप्त करने हेतु विशेष कार्य किया.
·      सवाल करने वालों से सवाल किया जाए उन्होंने समाज व देश के लिए क्या किया? आलोचना करना बहुत आसान है.


शोध में गांधी समूह चर्चा की रिपोर्ट :

सिनेमा में गांधी का अभिग्रहण
गांधी पर फिल्म/डाक्यूमेंट्री बने
शोध उपकरण के रूप में सिनेमा का प्रयोग किया जाए.
Gandhi in popular culture.
संकेत के रूप में गांधी
गांधी वांगमय की भूमिका का संकलन/संपादन
गांधी की आलोचनाओं की समीक्षा.
गांधी के समकालीन लोगों के कृतित्व को सामने लाना.
गांधी-लोहिया : प्रो. मनोज कुमार
गांधी-भगत सिंह : डॉ. अमित राय
गांधी अंबेडकर : डॉ. अमित विश्वास  
पूना पैक्ट : शैलेश
जे.पी. : सुरेश शर्मा
टैगोर : अमरेन्द्र कु. शर्मा
नेहरु : शम्भू जोशी
मीरा : सुप्रिया
सुभाष : चित्रा

कस्तूरबा की समकालीन महिलाओं का इतिहास लेखन
सुशीला नैय्यर : सुप्रिया

·      युवाओं के लिए प्रेरक प्रसंग
·      2 क्रेडिट का पाठ्यक्रम ugc द्वारा गांधी पर सुनिश्चित किया जाए
·      देश के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का सम्मलेन
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विश्वविद्यालय काशी,गुजरात –एक कार्यक्रम –एक बैठक- GSDS
·      गांधी वादी संस्थाओं पर शोध का कार्य हो.
·      MGCU गांधी कार्यक्रम प्रारम्भ करे.
·        गांधी को नाटक में, साहित्य में , डाक्यूमेंट्री आदि के साथ अनिवार्य रूप से लाना चाहिए
·      culture of peace व सत्याग्रह 2018-2019 को घोषित किया जाए
·      गांधी के शैक्षणिक प्रयोगों पर शोध हो.
·      हिंसा व प्रतिरोध के बदलते स्वरूप में गांधी
·      गांधी दर्शन में पुनर्चर्चा व उन्मुखीकरण
·      विदेशों में गांधी कार्य हेतु धनराशि एवं सहयोग
·      विदेशों में गांधी कार्य


कलानन्द मणि ने सूचित किया कि पूना में किसानों का संगठन बना है जिसकी पहुँच सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचा रहा है.
बसंत भाई ने नयी दिल्ली में 1व 2 मई को प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति से बापू की 150 वीं जयंती होने जा रही वार्ता का ज़िक्र किया. 


Thursday, April 26, 2018

बा-बापू जयंती के 150 वर्ष को याद करने की रस्म अदायगी से हमें बाहर निकलना होगा : प्रो. गिरीश्वर मिश्र

वर्धा, 26 अप्रैल. महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय एवं गाँधी स्मृति एवं दर्शन समिति नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में तीन दिवसीय बा-बापू 150 वीं जयंती तैयारी बैठक सह कार्यशाला का प्रारंभ हुआ. कार्यक्रम का आरंभ महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र, पीसफुल सोसाएटी, गोवा के कलानंद मणि, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ के प्रो. शाहिद अली के द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलन से हुआ. महात्मा गाँधी फ्यूजी गुरूजी सामाजिक कार्य अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. मनोज कुमार ने सामूहिक रूप से सर्वधर्म प्रार्थना कराया.
उदघाटन सत्र का संचालन करते हुए डॉ. मिथिलेश कुमार ने नई दिल्ली में 12 से 15 मार्च को राष्ट्रीय स्तर पर हुए बा-बापू 150वीं जयंती तैयारी बैठक का संक्षिप्त सार पेश किया. प्रो. मनोज कुमार ने उदघाटन सत्र को शुरू करते हुए कहा कि सन 1869 ई. में बा-बापू दोनों का जन्म हुआ था. 2019 में इन दोनों विभूतियों की जयंती के 150 साल पूरे हो रहे हैं. उन्होंने छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों से आए हुए सभी प्रतिनिधियों का स्वागत किया.
कलानंद मणि ने उक्त मौके पर कहा कि 2 अक्तूबर 2019 बा-बापू के जीवन के 150 वर्ष को पूरे हो रहे हैं. आज कोई यह सवाल कर सकता है कि हम उन्हें क्यों याद करें? उन्होंने पेरिस और कोपेनहेगन के पर्यावरण सम्मलेन के अपने अनुभवों की चर्चा करते हुए बताया कि इन दोनों सम्मेलनों में पाकिस्तान के प्रतिनिधियों के मेरे अनुभव ने गाँधी की महत्ता पर नए सिरे से विचार करने पर बाध्य कर दिया. उन्होंने महात्मा गाँधी के चर्चित जीवनी लेखक बी.आर.नंदा के हवाले से गाँधी के कुछ चुनिन्दा संस्मरणों का उल्लेख करते हुए बा-बापू की 150 वीं जयंती मनाए जाने की महत्ता पर प्रकाश डाला. उन्होंने गाँधी के दक्षिण अफ्रीका के रचनात्मक संघर्ष का उल्लेख करते हुए कहा कि गाँधी ने वहां न केवल सत्याग्रह ही किया बल्कि दो-दो संस्थाओं की रचना भी की. दक्षिण अफ्रीका के सफल सत्याग्रह के बाद गाँधी भारत वापस लौटे तो यहाँ चल रहे स्वतंत्रता आन्दोलन के नेताओं से मिलते हैं. उन्होंने गाँधी के द्वारा1909 में रचित हिन्द स्वराज्य नामक पुस्तिका की चर्चा की. इस पुस्तिका में गाँधी ने पश्चिमी भौतिकवादी सभ्यता को नकारते हुए उसे शैतानी सभ्यता करार दिया और स्वराज्य की संक्षिप्त रुपरेखा पेश की थी. उन्होंने कहा कि गाँधी ने आधुनिक सभ्यता से होने वाले जिस नुकसान की तरफ इशारा किया था आज वह पूरी तरह से हमारे सामने है. आगे उन्होंने कहा कि कस्तूरबा के साथ ने गाँधी को विशाल बनाया था. आज बा-बापू के विचारों व उनके संघर्षों को नये सन्दर्भों में याद करने की आवश्यकता है. अपने वक्तव्य के अंत में उन्होंने इस तीन दिवसीय बैठक से संबंधित आवश्यक निर्देश दिया.
उद्घाटन सत्र में अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए कुलपति प्रो. गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि गाँधी हमारे अनुभव के अंग हो सकते हैं. आज समकालीन समस्याओं को लेकर तरह-तरह की चिंताएं व्यक्त की जाती हैं. इसका सरोकार हमारे जीवन-दर्शन से है. आज चौतरफा समस्याओं से मुक्ति की कोशिशें चल रही है. महात्मा गाँधी ने अपने समय में समस्याओं को मिटाने हेतु जो प्रयत्न किया, उससे आज हम काफी लाभान्वित हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि देश में अन्य किस्म की असमानता तो व्याप्त है ही इसके साथ ही व्यवहार और विचार के स्तर पर भी काफी विपन्नता आयी है. आज काफी चिंताजनक विसंगतियां सामने आ रही है. मानवीय आचरण का जो स्खलन हो रहा है, वह परेशान कर देने वाला है. उन्होंने कहा कि ऐसी कठिन परिस्थिति में हमें बा-बापू के जीवन-दर्शन को नए सिरे से स्थापित करना होगा. बा-बापू को याद करने की रस्म अदायगी से हमें बाहर निकलना होगा और उन्हें संजीदा ढंग से याद करना होगा.
आगे उन्होंने मौजूदा राजनीति, मीडिया आदि की भूमिका पर भी चिंता प्रकट करते हुए कहा कि हमें यथार्थ से दूर ले जाया जा रहा है. हमें इसके रचनात्मक उपयोग पर विचार करना होगा. बा-बापू के संस्मरण को जीवन का रचनात्मक अंग बनाने के बारे में भी हमें सोचना होगा. बा-बापू हमारे देश-समाज और संस्कृति के लिए जरुरी हैं. आज उपभोक्तावादी संस्कृति एक प्रकार से गैर-जरुरी आवश्यकताओं को बढ़ा रही है. इस विचित्र समय में हमें गाँधी के उस वक्तव्य जिसमें उन्होंने कहा था कि- “धरती हममें से हर किसी की आवश्यकता तो पूरी कर सकती है किन्तु लोभ किसी एक का भी नहीं” पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा. क्योंकि धरती पर संसाधन अनंत नहीं है, यह सीमित है. संसाधनों का अंधाधुंध दोहन अत्यंत ही खतरनाक साबित हो सकता है. उन्होंने वर्तमान बाजारवाद की विसंगतियों की तरफ सबों का ध्यान खींचते हुए कहा कि गाँधी के आर्थिक चिंतन, जिसे जे.सी.कुमारप्पा ने विकसित किया था, की प्रासंगिकता आज काफी बढ़ गई है. पृथ्वी की जीवन अवधि को बढ़ाने के लिए यह जरुरी हो गया है. आज बेरोजगारी जिस रफ़्तार से बढ़ रही है, उसका समाधान भी गाँधी के चिंतन में देखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि टेक्नॉलोजी जिस अनुपात में बढ़ती जाती है उसी मात्रा में बेकारी भी बढ़ती जाती है. अगर हमें स्वावलंबन चाहिए तो इसे गाँधी से सीखना पड़ेगा. गाँधी ने हमें स्वावलंबन का मंत्र दिया था. गाँधी हमारे लिए दूर नहीं, बल्कि एकदम निकट हैं. अगर हम अच्छा पर्यावरण चाहते हैं, सुन्दर देश-दुनिया चाहते हैं तो हमें गाँधी से सबक लेना होगा.  अंत में उन्होंने यह उम्मीद जताई कि इस तीन दिवसीय तैयारी बैठक से कार्यक्रम की ठोस रुपरेखा सामने आएगी. अध्यक्षीय वक्तव्य के उपरांत इस सत्र का समापन हुआ. 
रिपोर्टिंग टीम : डॉ. मुकेश कुमार, नरेश गौतम, डिसेंट कुमार साहू एवं अतुल श्रीवास्तव

Thursday, April 12, 2018

महात्मा फुले और कस्तूरबा गांधी का जीवन-संघर्ष हमारे लिए पथ-प्रदर्शक है : प्रो. आनंदवर्द्धन शर्मा


वर्धा, 11 अप्रैल, 2018. महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिन्‍दी विश्‍वविद्यालय के महात्‍मा गांधी फ्यूजी गुरूजी सामाजिक कार्य अध्‍ययन केंद्र में महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले एवं कस्‍तूरबा गांधी की जयंती मनाई गई। दोनों महान विभूतियों के जीवन-संघर्षों को याद करते हुए उक्‍त अवसर पर संगोष्‍ठी का आयोजन हुआ। संगोष्‍ठी को संबोधित करते हुए विश्‍वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. आनंदवर्द्धन शर्मा ने कहा कि आज भारत के इतिहास का अति महत्वपूर्ण दिन है। आज देश के विभिन्न हिस्सों में कई महान विभूतियों का जन्‍म हुआ था। आज ही के दिन गांधीजी की सहधर्मिनी कस्तूरबा गांधी का जन्‍म हुआ था। आज ही महात्‍मा ज्योतिबा फुले और राहुल सांकृत्‍यायन की भी जयंती है। उन्होंने कहा कि महान कार्य करने वाली आत्‍माओं को ही महात्‍मा की संज्ञा से विभूषित किया जाता है। महात्मा फुले ने शिक्षा के लिए अद्वितीय कार्य किए हैं। राष्ट्र निर्माण की दृष्टि से उनके कार्य आज भी हमारे लिए पथ-प्रदर्शक हैं। स्‍त्री शिक्षा के लिए किए गए उनके कार्यों व संघर्षों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। आगे उन्होंने कहा कि महाराष्‍ट्र की धरती हमेशा से विभूतियों की धरती रही है। कई महापुरूष या तो सीधे यहीं पैदा हुए हैं अथवा कई एक की यह कर्मभूमि रही है। महात्मा ज्‍योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले की यह जन्‍मभूमि और कर्मभूमि दोनों रही है। वहीं यह बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी एवं कस्तूरबा गांधी की यह कर्मभूमि रही है। उन्‍होंने छात्र-छात्राओं से कहा कि उन्‍हें महापुरूषों की जन्‍मभूमि व कर्मभूमि का दर्शन करने जाना चाहिए। ये स्‍थल आज भी हमें आज भी प्रेरित करते हैं। उन्‍होंने देशभर में महापुरूषों की जन्मभूमि और कर्मभूमि से जुड़े अपने अनुभवों को छात्र-छात्राओं से साझा किया। उन्‍होंने बताया कि हमारे महापुरूषों के जीवन में हमें कथनी और करनी के बीच गहरा तालमेल देखने को मिलता है। उन्होंने यह भी कहा कि महापुरूषों को किसी जाति-धर्म-संप्रदाय अथवा देश-काल की सीमाओं तक सीमित नहीं किया जा सकता है। उन्‍होंने सभी छात्र-छात्राओं से महात्‍मा फुले और कस्‍तुरबा गांधी सरीखे महापुरूषों से संबंधित साहित्‍य का अध्‍ययन करने और उससे प्रेरणा गृहन करने की बात कही। अंत में उन्होंने कहा कि हमें अपने इन महापुरूषों से मानवता और भ्रातृत्‍व का संदेश सीखना चाहिए।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. नृपेन्‍द्र प्रसाद मोदी ने कहा कि कस्‍तूरबा गांधी जी से उम्र में 6 माह के लगभग बड़ी थी और यह वर्ष बा-बापू की जयंती का 150 वां वर्ष भी है। उन्‍होंने बा-बापू से जुड़े हुए स्‍थलों के भ्रमण के अपने निजी अनुभवों की भी चर्चा की। उन्‍होंने महात्‍मा ज्‍योतिबा फुले के ऐतिहासिक योगदानों की विस्तृत चर्चा की। अंग्रेजों की गुलामी के दौर में इन महापुरूषों के कार्यों की विस्‍तृत चर्चा करते हुए उन्‍होंने बा-बापू के दक्षिण अफ्रीका से लेकर भारत में किए गए सत्‍याग्रह की भी चर्चा की।

विभाग की छात्रा माधुरी श्रीवास्तव ने कस्तूरबा गांधी के ईव्न संघर्ष की विस्तृत चर्चा करते हुए कहा कि कस्‍तूरबा महान समाज सेविका थी। उन्‍होंने महात्‍मा गांधी का कदम-कदम पर साथ दिया था। कस्‍तूरबा का जीवन-संघर्ष हमें आज भी प्रेरित करता है। वहीं विभाग की छात्रा सुजाता थुल ने कहा कि महात्‍मा फुले ने न केलव दलितों-पिछड़ों के लिए ही काम किया था अपितु महिलाओं की शिक्षा में उनका अभूतपूर्व योगदान है। उसी प्रकार कस्‍तूरबा गांधी ने महात्मा गांधी के साथ देश की आजादी की आंदोलन में महत्‍वपूर्ण योगदान था। एमफिल शोधार्थी राजन प्रकाश ने कहा कि थासम पेन की रचनाओं का महात्‍मा फुले एवं सावित्री फुले पर काफी प्रभाव था। विभाग के ही एमएसडब्ल्यू के छात्र रविचन्‍द्र ने कहा कि आज पूरे देश में महात्‍मा फूले की 191 वीं जयंती मनाई जा रही है। फुले ने ऐसे तबके के लिए शिक्षा का मार्ग खोला था जिन्‍हें उस वक्त तक शिक्षा के वंचित रखा गया था। किन्तु नव उदारवादी नीतियों की आड़ में आज शिक्षा के निजीकरण के नाम पर एक बार फिर आम लोगों के लिए शिक्षा के दरवाजे बंद किए जा रहा है।

संगोष्ठी के अंत में धन्‍यवाद ज्ञापन विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. मिथिलेश कुमार ने तथा संचालन डॉ. मुकेश कुमार ने किया। उक्‍त अवसर पर विभाग के प्राध्‍यापक डॉ. शिवसिंह बघेल, गजानन निलामे, डॉ. पल्‍लवी शुक्‍ला आदि उपस्थित थे। संगोष्ठी में विभाग के दर्जनों पी-एच.डी, एम‍ फिल, एम.एस.डब्‍ल्‍यू. एवं बी.एस.डब्‍ल्‍यू की छात्र-छात्राएं शामिल हुए।    


रिपोर्टिंग टीम- डॉ मुकेश कुमार, नरेश गौतम, डिसेंट साहू