Tuesday, February 3, 2015

सामाजिक न्याय और थर्ड जेण्डर

दिनांक-09/01/2015
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) के महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी शांति अध्ययन केंद्र में संचालित शोध-वार्ता की पहली कड़ी में सामाजिक न्याय और थर्ड जेंडर विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें प्रमुख वक्ता के रूप में रवीना बरिहा और विद्या राजपूत उपस्थित थीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. देवराज जी ने की।
इस कार्यक्रम में रवीना बरिहा जी ने कहा कि हम ज्ञान के सीमित दायरे में रहते हैं। आज समाज सिर्फ स्त्री और पुरुष के रूप में बंटा है यहाँ थर्ड जेंडर के अस्तित्व को नहीं माना जाता। आने वाले समय में थर्ड जेंडर समाज के सभी दायरे तोड़ सकते हैं। इतिहास से साक्ष्य देते हुए उन्होंने कहा कि हमारा अस्तित्व तो प्राचीन समय से ही है लेकिन आज भी हमारे लिए इस समाज में कोई जगह नहीं। वात्सायान के कामसूत्र का ग्यारहवां अध्याय ही तृतीय पंथी पर लिखा गया है। जिस उम्र में हमारे लिए घर का दरवाजा खुलना चाहिए उस समय में दरवाजा तो खुलता है लेकिन बाहर के लिए। ऐसा क्यों? जिस उम्र में हमें अपनों का प्यार मिलना चाहिए। उस उम्र में मिलती है दुत्कार।   

दूसरी विशेषज्ञ विद्या राजपूत का कहना है कि हम समाज को क्यों नहीं दिखाई देते? बचपन से हमारे अंदर घाव बनते हैं। हमें इस समाज में शारीरिक, मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है। हमारी किसी भी आवश्यकता की पूर्ति इस समाज द्वारा नहीं की जाती है। भिक्षावृत्ति एवं वेश्यावृत्ति के सिवाय हमारे सामने कोई विकल्प नहीं हैं। 2005 में इन्होंने छत्तीसगढ़ में तृतीय पंथियों के कल्याण के लिए मितवा संकल्प समिति स्थापित की। संगठन की विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से तृतीय पंथियों की समस्याओं की वकालत कर रही हैं। उन्होंने आगे कहा कि माँ-बाप बच्चों पर दबाव ना बनाए। उन्हें जो चुनाव करना है उसे चुनाव की आज़ादी होनी चाहिए। हम प्यार की तलाश में होते हैं लेकिन हमें प्यार नहीं मिल पाता बल्कि सभी जगह वह चाहे घर हो या बाहर, दुत्कार ही मिलती है। आर्थिक रूप  से कमजोर होने के कारण हम लोगों को ट्रेनों में या घर-घर जा कर नाच-गाना करना पड़ता है। नाच-गाना करने वाले कोती, किन्नर, सखी, आदि हैं। इनके लिए अलग-अलग संस्थाएं लगातार काम कर रही हैं पर यह लोग हम लोगों से भी अपनी दूरी बनाते हैं।
अध्यक्षीय भाषण में अनुवाद प्रौद्योगिकी विभाग के अध्यक्ष प्रो. देवराज ने कहा कि थर्ड जेण्डर को सुनकर संवेदना नहीं बल्कि मस्तिष्क में आग और नए विचार होने चाहिए। प्राचीन काल से हम उन्हें स्वीकारने में असफल रहे हैं। समाज का कोई भी वर्ग छोटा हो या बड़ा जब तक उसे स्वीकार नहीं करते तब तक हम विकास नहीं कर सकते। केंद्र के निदेशक  प्रो. मनोज कुमार ने आभार में सभी वक्ताओं का धन्यवाद व्यक्त किया और भविष्य में शोध वार्ता के तहत ज़मीन से जुड़े कार्यकर्ताओं व बौधिक व्यक्तित्वों को इसमें शामिल करने के बारे में विस्तार से बताया। प्रो. मनोज कुमार का कहना था कि हम इस तरह की अनेक गतिविधियों और परिचर्चाओं के द्वारा शोध व शोधार्थीयों को परिसर के संकुचित दायरे से निकाल कर ज़मीनी हकीकत से लगातार रूबरू करना चाहते हैं । यह केंद्र इस तरह के प्रयास जारी रखेगा। कार्यक्रम का संचालन डॉ. शिव सिंह बघेल ने किया। विषय प्रवेश एवं परिचय डिसेंट कुमार साहू ने किया। इस अवसर पर कार्यक्रम को सफल बनाने में शोध वार्ता के छात्र समन्वयक के रूप में नरेंद्र दिवाकर, गजानन निलामे, शिवाजी, नरेश गौतम एवं समस्त विभाग की सराहनीय भूमिका रही। इस कार्यक्रम में समाज कार्य विभाग के साथ ही अन्य विभागों के शिक्षक शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

नरेश गौतम
पी-एच॰ डी॰ शोधार्थी
महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी शांति अध्ययन केंद्र,
म॰ गाँ॰ अं॰ हिं॰ विश्वविद्यालय, वर्धा।  
nareshgautam0071@gmail.com

2 comments:

  1. bharat ek loktantra desh hone ke bawjud aaj bhi third jendar ko samajik swikaryata nhi mili hui hai... yah sharmanak sthiti hai.. aaj bhi unhe aise dekha jata hai jaise wo kisi dusre grah ke ho...

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